नई दिल्ली: नार्वे के लेखक यून फुस्से को उनके नाटकों और गद्य के लिए साहित्य नोबेल पुरस्कार 2023 दिया गया है. साहित्य जगत में इस पुरस्कार की अपनी ही प्रतिष्ठा है, इसीलिए भारत में भी साहित्यकारों ने फुस्से को यह सम्मान मिलने पर खुशी जताई. फुस्से ने अपने उपन्यासों को एक ऐसी शैली में लिखा है, जिसे ‘फुस्से मिनिमलिज्म‘ के नाम से जाना जाता है. उनके दूसरे उपन्यास ‘स्टेंग्ड गिटार‘ से यह शैली विकसित हुई. फुस्से एक कवि भी हैं. इसीलिए नोबेल सम्मान मिलने पर उन्होंने कहा कि “मैं अभिभूत हूं, और कुछ हद तक डरा हुआ भी हूं. मैं इसे साहित्य के लिए एक पुरस्कार के रूप में देखता हूं, जिसका सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य बिना किसी अन्य विचार के साहित्य होना ही है.” नोबेल समिति ने अपने वक्तव्य में कहा कि- यह पुरस्कार फ़ुस्से को उनके नवोन्मेषी नाटकों और गद्य के लिए प्रदान किया जा रहा है, जो अनकही को आवाज देते हैं.
64 वर्षीय फुस्से के प्रकाशक इस पुरस्कार को नार्वे की एक भाषा को बढ़ावा देने वाले आंदोलन के रूप में देखते हैं. अपने 4 दशक के साहित्यिक कार्यकाल में फुस्से ने दो दर्जन से अधिक नाटकों के अलावा उपन्यास, निबंध, कविता संग्रह और बच्चों के लिए कई किताबें भी लिखी हैं. उनके साहित्यिक कामों का 40 से अधिक भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है और उनके नाटकों की 1000 से ज्यादा प्रस्तुतियां हो चुकी हैं. विशेष बात यह कि फुस्से की पुस्तक पहले ही हिंदी में वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की जा चुकी है. प्रकाशन ने सोशल मीडिया पोस्ट पर लिखा कि नार्वे के लेखक यून फ़ुस्से को साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार 2023 से सम्मानित किया गया है. उनकी अंतरराष्ट्रीय ख्याति- प्राप्त पुस्तक Det er Ales का हिंदी अनुवाद प्रसिद्ध कवयित्री तेजी ग्रोवर द्वारा 2016 में किया गया था और वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया था. पुस्तक का नाम था ‘आग के पास आलिस है यह‘. प्रकाशन ने हिंदी जगत की ओर से यून फ़ुस्से को शुभकामनाएं और अनुवादक ग्रोवर को धन्यवाद दिया है कि उनकी वजह से यह कृति हिंदी साहित्य प्रेमियों तक पहुंची.