नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी के प्रतिष्ठित कार्यक्रम कविसंधि में प्रख्यात ओड़िआ कवयित्री प्रतिभा शतपथी ने अपनी कविताएं और रचना-प्रक्रिया साझा की. उन्होंने कहा कि कविता से मेरा लंबा संबंध है और यह मुझे बचपन में प्रकृति प्रेम के चलते प्राप्त हुआ. आगे चलकर सरला दास जैसे अनेक वरिष्ठ लेखकों को पढ़कर मैंने अपनी काव्य-यात्रा को हमेशा परिष्कृत किया. मेरी कविता में मेरे सच्चे अनुभव, सुख-दुख और समाज की विकृत सच्चाइयां प्रतिबिंबित होती हैं. मेरी कविताएं मानो शब्दों में व्यक्त आंसू की बूंदे हैं. मेरी कविताएं निरंतर परिवर्तन का प्रतीक हैं. हर कवि की तरह मेरे लिए भी कविता अंतहीन प्रयास है. एक तपस्या है बिना किसी लाभ की आशा किए. अपनी कविताओं से मैं स्वयं को पृथ्वी से जुड़ा महसूस करती हूं.
शतपथी ने अपनी कुछ कविताएं मूल ओड़िआ में पढ़ी और उसके बाद कुछ अनूदित कविताएं हिंदी और अंग्रेजी में प्रस्तुत कीं. कुछ अंग्रेजी कविताओं के शीर्षक थे ‘जस्ट लाइक अर्थ‘ तथा ‘नो वर्ड्स इन पर्टिकुलर‘ आदि. कार्यक्रम के अगले चरण में उनकी कविताओं के हिंदी अनुवाद लीलाधर मंडलोई, राजेंद्र प्रसाद मिश्र और पारमिता शतपथी ने तथा अंग्रेजी अनुवाद यशोधारा मिश्र, वी भूमा आदि ने प्रस्तुत किया. कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने प्रतिभा शतपथी का स्वागत अंगवस्त्रम एवं साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित पुस्तक भेंट कर की. कार्यक्रम में हिंदी, ओड़िआ कई महत्त्वपूर्ण लेखक, अनुवादक सुरेश ऋतुपर्ण, दिविक रमेश, गिरीश्वर मिश्र, लक्ष्मी कण्णन, सुमन्यु शतपथी आदि उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन एवं अंत में धन्यवाद ज्ञापन साहित्य अकादेमी के उपसचिव देवेन्द्र कुमार देवेश द्वारा किया गया.