नई दिल्ली: संसद के बजट सत्र में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने दो कविताओं की पंक्तियां पढ़ीं, जिनमें से एक पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न से सम्मानित अटल बिहारी वाजपेयी की थी, तो दूसरी उत्कल रत्न, उत्कलमणि पंडित गोपबंधु दास की. राष्ट्रपति ने वाजपेयी की कविता की ये पंक्तियां पढ़ीं- “अपनी ध्येय-यात्रा में, हम कभी रुके नहीं हैं. किसी चुनौती के सम्मुख, कभी झुके नहीं हैं.” तो उत्कलमणि पंडित गोपबंधु दास की ये अमर पंक्तियां, जो असीम राष्ट्र प्रेम की भावना का सदा संचार करती हैं, को पढ़ा- “मिशु मोर देह ए देश माटिरे, देशबासी चालि जाआन्तु पिठिरे. देशर स्वराज्य-पथे जेते गाड़, पूरु तहिं पड़ि मोर मांस हाड़.” अर्थात “मेरा शरीर इस देश की माटी के साथ मिल जाए, देशवासी मेरी पीठ पर से चलते चले जाएं, देश के स्वराज्य-पथ में जितनी भी खाइयां हैं, वे मेरे हाड़-मांस से पट जाएं.” राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा कि इन पंक्तियों में हमें कर्तव्य की पराकाष्ठा दिखती है, ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ का आदर्श दिखाई देता है. आखिर कौन हैं उत्कलमणि पंडित गोपबंधु दास, जिनके बारे में हिंदी जगत बहुत कम जानता है. वह सच्चे अर्थों में एक रत्न और गरीबों के मित्र थे. 9 अक्टूबर, 1877 को ओड़िशा के पुरी जिले के साक्षीगोपाल के पास सुआंडो गांव में जन्मे दास ने जन्म के कुछ महीनों के बाद अपनी मां स्वर्णमयी देवी को खो दिया था. उन्होंने ओड़िआ भाषा से पढ़ाई की.
दास जब रेवेंशा कालेज में थे, तभी उन्होंने ‘अबकाशा चिंता’, ‘गो-महात्मय’, ‘नचिकेता उपाख्यान’, ‘कराकाबिता’, ‘धर्मपद’ और ‘बंदिरा आत्मकथा’ जैसी कृतियां लिखीं. ‘इंद्रधनु’ और ‘बिजुली’ नामक स्थानीय साहित्यिक पत्रिकाओं में उनका नियमित योगदान रहा. उनका तर्क था कि कोई भी आधुनिक साहित्यिक आंदोलन, किसी भी आधुनिक राष्ट्र की तरह, अपने अतीत से पूरी तरह अलग नहीं हो सकता, बल्कि उसे अपने अतीत को स्वीकार करना होगा और उस पर आधारित होना होगा. दास ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से एमए और एलएलबी की उपाधि प्राप्त की. वे सामाजिक और शैक्षिक सुधार लाने के लिए सजग थे और स्वदेशी आंदोलन के दर्शन से प्रभावित थे. उनका मानना था कि अगर लोगों को अपनी जन्मजात स्वतंत्रता और देश के प्रति अपने कर्तव्य के बारे में जागरूक होना है, तो शिक्षा आवश्यक है. राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर ब्रह्मानंद सतपथी ने कहते हैं कि छुआछूत के खिलाफ दास का अभियान, विधवा पुनर्विवाह की वकालत, साक्षरता के लिए अभियान, शिक्षा का नया माडल, अधिकारों और कर्तव्यों पर जोर, महिला शिक्षा, विशेष रूप से व्यावसायिक प्रशिक्षण पर जोर और सबसे बढ़कर, गरीबों और निराश्रितों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता और करुणा ने उन्हें ओड़िशा ही नहीं भारत भर में अमर बना दिया.