नई दिल्ली: कहानी में दम हो और विषय मोहक तो उसे सराहना मिलेगी ही. चोलानैक्कन समुदाय की अनकही कहानियों और केरल के वन क्षेत्रों की गहन सांस्कृतिक समृद्धि का सार और इच्छित संदेश देती फिल्म ‘लुकिंग फार चल्लन‘ को मिला राष्ट्रीय पुरस्कार यही बताता है. यह फिल्म इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा निर्मित और बप्पा रे द्वारा निर्देशित की गई है. इस फिल्म को ‘सर्वश्रेष्ठ खोजी फिल्म‘ श्रेणी के अंतर्गत सम्मानित किया गया. आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डा सच्चिदानंद जोशी और बप्पा रे ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु से इस प्रतिष्ठित सम्मान को प्राप्त किया. फिल्म को प्रतिष्ठित ‘रजत कमल‘, उत्कृष्टता प्रमाणपत्र और 50,000 रुपए का नकद पुरस्कार मिला. ‘लुकिंग फार चल्लन‘ केरल की नीलांबुर वन संस्कृति और विरासत की मनमोहक दुनिया को उत्कृष्ट रूप में न केवल उजागर करती है, बल्कि इन पर प्रकाश भी डालती है.
इस अवसर पर बप्पा रे ने कहा कि फिल्म की यह यात्रा किसी सम्मान से कम नहीं है. उनका दृढ़ विश्वास है कि यह सम्मानपूर्ण मान्यता और अधिक अनदेखी कहानियों को सामने लाने के उनके जुनून को और बल प्रदान करेगी. उन्होंने कहा कि इस फिल्म ने सही मायनों में एक पहचान हासिल की है और इसकी उपलब्धि का श्रेय पूरी टीम के अटूट समर्पण एवं धैर्य को दिया जा सकता है. एक सिनेमाई उत्कृष्ट कृति होने के अलावा ‘लुकिंग फार चल्लन‘ कहानी बताने की कमियों को मिटाने, संस्कृति का उत्सव मनाने और परिवर्तन लाने की क्षमता का शक्तिशाली प्रमाण है. यह न केवल फिल्म निर्माता के लिए बल्कि उन सभी के लिए एक परिवर्तनकारी यात्रा है जो प्रकृति के मनमोहन स्वरूप और चोलानैक्कन समुदाय के मिलनसार व्यवहार को जानने की जिज्ञासा रखते हैं. डा जोशी के मुताबिक इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र अनकही कहानियों को समाज के सम्मुख लाने के लिए प्रतिबद्ध है. आईजीएनसीए के अथक प्रयासों के माध्यम से ‘लुकिंग फार चल्लन‘ जैसी सिनेमाई उत्कृष्टता का मार्ग प्रशस्त होता है और यह दुनिया भर के दर्शकों के दिलों को गहराई से छूती है.