मेरठ: चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय के अटल सभागार में ‘प्रागैतिहासिक काल से अब तक मेरठ का इतिहास’ महाविशेषांक का विमोचन हुआ. इस कार्यक्रम में मेरठ जनपद के अनेक समाजसवियों एवं गणमान्य नागरिकों ने भाग लिया. मुख्य अतिथि के रूप में मेरठ परिक्षेत्र के अपर पुलिस महानिदेशक डीके ठाकुर उपस्थित थे. चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो संगीता शुक्ला ने इस महाविशेषांक का विमोचन किया. विशिष्ठ अतिथि के रूप मेरठ की मुख्य विकास अधिकारी नुपुर गोयल भी मंच पर उपस्थित थी. सभी अतिथियों ने इस महाविशेषांक के प्रकाशन के लिए इसके संपादक और लेखक चरणसिंह स्वामी को शुभकामनाएं दीं. वक्ताओं का मत था कि यह महाविशेषांक मेरठ के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा. चौधरी चरणसिंह विवि के इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो विघ्नेश कुमार, एसोसिएट प्रो केके शर्मा एवं मेरठ कालेज के इतिहास विभाग के सेवानिवृत्त प्रो डा केडी शर्मा ने पुस्तक के विषय में बताया एवं मेरठ जनपद की ऐतिहासिकता से परिचय कराया. 366 पृष्ठीय इस महाविशेषांक में मेरठ का प्रागैतिहासिक कालीन इतिहास, रामायणकालीन इतिहास, महाभारत कालीन इतिहास, बौद्ध कालीन इतिहास, राजपूत कालीन इतिहास, मुगलकालीन इतिहास और ब्रिटिश शासनकाल से लेकर भारत की आजादी तक का इतिहास शामिल है. इसके साथ ही मेरठ की कला एवं सांस्कृतिक इतिहास, साहित्यिक इतिहास, औद्यौगिक इतिहास, शिक्षा एवं चिकित्सा जगत के प्रमुख संस्थान, खेल-खिलाड़ियों आदि का विस्तृत इतिहास संकलित है.
इतिहासकार डा विघ्नेश कुमार के अनुसार महाभारत के रचयिता वेदव्यास को मेरठ के पहले इतिहासकार के रूप में स्मरणीय रखना चाहिए, क्योंकि महाभारत का केंद्र हस्तिनापुर मेरठ में ही स्थित है. रामायण ग्रंथ में जिस मय दानव का उल्लेख आता है, उसी मय दानव ने मयराष्ट्र की स्थापना की थी, जिसकी पुत्री मंदोदरी रावण की पटरानी बनी. डा रामगोपाल भारतीय ने कहा कि प्रस्तुत ग्रंथ को श्रीमद्भगवत गीता के बराबर ही 18 अध्यायों में विभक्त किया गया है. इसी क्रम में आज हम सब मेरठ का इतिहास नामक इस ग्रंथ के साक्षी बन रहे हैं. चरणसिंह स्वामी ने बताया कि इस महाविशेषांक को शिक्षासेवी एवं समाजसेवी उद्योगपति दयानंद गुप्ता एवं पीडी मित्तल को समर्पित किया गया है. इस विशेषांक के संरक्षक मंडल के योगेश मोहन गुप्ता, अतुल कृष्ण, कुंवर विजेंद्र शेखर, आरसी गुप्ता, दिनेश चंद्र जैन, नीरज मित्तल, अजीत कुमार, देशपाल गुर्जर, ठाकुर समीर चौहान, डा ओपी अग्रवाल, डा ओमपाल सिंह, डा आरके भटनागर, महेश कुमार गुप्ता, सुधीर कुमार गुप्ता, आशीष कुमार गुप्ता, अनंगपाल सिंह, कृष्ण कुमार चोपड़ा और जयवीर सिंह डोयला शामिल हैं. इस संग्रहणीय ग्रंथ को महत्त्वपूर्ण दस्तावेज बनाने में जिन शिक्षाविदों, साहित्यकारों, इतिहासकारों और विद्वानों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष योगदान रहा है, उनमें प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता प्रो विघ्नेश कुमार, प्रो. केडी शर्मा, डा केके शर्मा, ओज कवि डा हरिओम पंवार, प्रो एसके मित्तल, डा पीयूष लता भाटी, प्रो आराधना, राजेंद्र कुमार शास्त्री, डा कुलदीप कुमार त्यागी, डा मुदित कुमार, लेफ्टिनेंट कर्नल अमरदीप त्यागी, डा रामगोपाल भारतीय, ज्ञान दीक्षित, रंगकर्मी भारत भूषण, अरुण कुमार, योगेश शास्त्री आदि के नाम भी उल्लेखनीय हैं. इस अवसर नवीन चन्द्र लोहानी, सौरभ जैन ‘सुमन’, मंयक अग्रवाल, सुशील कृष्ण गुप्ता, महेश कुमार शर्मा, मनमोहन भल्ला, नरेन्द्र गर्ग, डा सुबोध गर्ग, ओडी शर्मा, ओमप्रकाश रतूड़ी आदि उपस्थित थे.