मधुपुर: शहर के भेड़वा नावाडीह स्थित राहुल अध्ययन केंद्र में प्रसिद्ध कथाकार कमलेश्वर को उनकी जयंती और हिंदी और खड़ी बोली के पितामह साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चन्द्र को उनकी पुण्यतिथि पर याद किया गया. दोनों विभूतियों की तस्वीर पर माल्यार्पण कर लोगों ने श्रद्धा सुमन अर्पित किया. इस अवसर पर धनंजय प्रसाद ने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र आधुनिक हिंदी साहित्य जगत के अग्रदूत थे. वे लेखक, साहित्यकार, पत्रकार, नाटककार व अनुवादक थे. वे हिंदी नाटक के जनक थे. उन्होंने मात्र 35 वर्ष की अल्पायु में 75 के करीब पुस्तकों की रचना कर हिंदी साहित्य को समृद्ध किया. साथ ही उन्होंने साहित्यिक पत्रिकाओं का संपादन किया. जिसमें काव्य वचन सुधा, बाल बोधिनी, नाटक-अंधेर नगरी, भारत की दुर्दशा, नीम देश आदि ढेरों ग्रंथों की रचना की. 1857 से 1900 के काल को हिंदी साहित्य में भारतेंदु काल के नाम से जाना जाता है. उन्होंने गुलामी के उस दौर में अपनी लेखनी के माध्यम से अंधेर नगरी चौपट राजा जैसी नाटक की रचना की.

प्रसाद ने कहा कि  कमलेश्वर नयी कहानी, आंदोलन के अगुआ थे. वे नयी कहानी लेखन में आंदोलन लाने वाले त्रिमूर्ति में से एक थे. उन्हें बीसवीं सदी के सशक्त लेखकों में से एक माना जाता है. उन्होंने कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया. कमलेश्वर का लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा बल्कि उनके लेखन के कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं. उनका उपन्यास ‘कितने पाकिस्तान’ हो या फिर भारतीय राजनीति का एक चेहरा दिखाती फ़िल्म ‘आंधी’ हो, कमलेश्वर का काम एक मानक के तौर पर देखा जाता रहा है. उन्होंने मुंबई में जो टीवी पत्रकारिता की, वो बेहद मायने रखती है. ‘कामगार विश्व’ नाम के कार्यक्रम में उन्होंने ग़रीबों, मज़दूरों की पीड़ा-उनकी दुनिया को अपनी आवाज दी. कमलेश्वर की अनेक कहानियों का उर्दू में भी अनुवाद हुआ है. आज के दौर में ऐसे विभूतियों को याद करना लाजिमी है. इस अवसर पर अन्य लोगों ने भी विचार व्यक्त किये.