जमशेदपुरः “मुंशी प्रेमचंद उर्दू जुबान और अदब के प्रेमी व आशिक थे. उनके अफसानों में ये चीजें साफ झलकती थीं. इन अफसानों में राजनीतिक, सामाजिक चेतना विद्यमान थी, जिसमें धार्मिक सहिष्णुता थी और उसमें मुल्क और खास तौर पर गंगा-जमुनी तहजीब की अमिट छाप दिखाई पड़ती है.” यह कहना है स्थानीय करनडीह स्थित लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल कॉलेज के प्राचार्य डॉ अशोक कुमार झा का. वे उर्दू विभाग की ओर से स्नातक प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुपालन में विभागीय व्याख्यान ‘झारखंड के अहम अफसाना निगार’ की चौथी कड़ी में बतौर अध्यक्ष बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि अफसाना फारसी मूल का एक शब्द है, जिसका अनुवाद कहानी, कथा, लघु कथा आदि के रूप में किया जाता है. उर्दू साहित्य के लिए इस शब्द का प्रयोग अक्सर अर्थ के विभिन्न रंगों को बोलने के लिए किया जाता है. उन्होंने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं वरन सतत् दिशा निर्देशन भी है. उर्दू अदब की भाषा है.
मुख्य वक्ता के रूप में करीम सिटी कॉलेज के सहायक प्राध्यापक डॉ अफसर काजमी ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद उर्दू के पहले अफसाना निगार हैं, जिन्हें उर्दू अफसानों का बाबा आदम कहा जाता है. जिसे हम अफसाना कहते हैं इसकी उम्र 100 वर्ष के लगभग है. इस 100 वर्ष की उम्र में अफसानों ने बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन प्रेमचंद ने अपने 30-35 वर्षों में ‘कफन’ जैसा शाहकार अफसाना लिखा. उन्होंने झारखंड के ग्यास अहमद गद्दी, जकी अनवर, गुरुवचन सिंह, शीन अख्तर, अख्तर यूसुफ, इलियास अहमद गद्दी, कहकशां परवीन, नियाज अख्तर और अख्तर आजाद के अफसानों पर भरपूर रोशनी डाली. व्याख्यान श्रृंखला की संयोजक एवं उर्दू विभाग की प्रोफेसर डॉ शबनम परवीन ने मंच संचालन किया. उन्होंने कहा कि प्रोफेसर मुहम्मद मुस्लिम ने झारखंड में उर्दू अफसाने का आगाज़ 1927 ईसवी में किया. उसके बाद से छोटानागपुर में उर्दू अफसाना निगारी की रवायत चल पड़ी. स्वागत भाषण निमी परवीन तथा धन्यवाद ज्ञापन सेमेस-5 की छात्रा नाज़िश अर्शी ने किया. इस अवसर पर डॉ प्रशांत, प्रो मोहन साहू, डॉ सुधीर सुमन, प्रो प्रमिला किस्कू, डॉ नूपुर, प्रो सलोनी रंजन सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित थे.