नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित पुस्तकायन पुस्तक मेले के छठे दिन साहित्यिक पत्रिकाओं की पहचान और उनकी भूमिकाओं पर चर्चा हुई. इस पैनल चर्चा की अध्यक्षता साहित्यकार ममता कालिया ने की और शैलेंद्र सागर ‘कथाक्रम’, संजय सहाय ‘हंस’ एवं पल्लव ‘बनास जन’ ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए. सबसे पहले ममता कालिया ने साहित्यिक पत्रिकाओं को लघु पत्रिकाओं के रूप में चिन्हित करते हुए कहा कि लघु पत्रिकाओं ने हिंदी साहित्य के कई नए आंदोलन खड़े किए और उससे हज़ारों पाठकों को जोड़ा. उन्होंने साहित्यिक पत्रिकाओं के समर्थ इतिहास को प्रस्तुत करते हुए बताया कि कैसे रवींद्र कालिया की इलाहाबाद स्थित प्रेस में लघु पत्रिकाएं छापी जाती थीं और युवा पीढ़ी उन्हें खरीदने के लिए लालायित रहती थी. हंस के संपादक संजय सहाय ने अपने वक्तव्य में कहा कि साहित्यिक या लघु पत्रिका वही है, जिसमें कोई अंतर्निहित स्वार्थ न हो. उन्होंने कहा कि लघु पत्रिकाओं ने नए और युवा साहित्यकारों को एक बड़ा मंच प्रदान किया. कथाक्रम के संपादक शैलेंद्र सागर ने लघु पत्रिकाओं के सामने आने वाली मुश्किलों की चर्चा करते हुए कहा कि आज के समय में पत्रिकाओं को भेजने का डाक-खर्च इतना अधिक हो गया है कि उन्हें कम मूल्य पर भेज पाना संभव नहीं रह गया है. उन्होंने यह प्रस्ताव रखा कि भारत सरकार से जितनी भी पत्रिकाएं पंजीकृत होती है, वे चाहे नियमित हों या अनियमित, उन्हें पोस्टेज की छूट हमेशा मिलनी चाहिए. बनास जन के संपादक पल्लव ने कहा कि साहित्यिक पत्रिकाओं की पूंजी उनके पाठक हैं और हमें उन तक पहुंचने का निरंतर प्रयास करना चाहिए. उन्होंने सोशल मीडिया पर प्रकाशित होने वाली कुछ महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि हमें उनको भी प्रोत्साहित करने का कार्य करना चाहिए. उन्होंने कहा कि साहित्यिक पत्रिकाओं की ज़रूरत किसी समाज के लिए इसलिए भी है क्योंकि वे साहित्यिक आंदोलन और विचारवान मानस बनाने का वातावरण तैयार करती हैं.

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए संजय सहाय ने हस्तक्षेप किया कि सरकार हमारी सहायता करे तो उसके पीछे किसी उपकार का भाव नहीं होना चाहिए. शैलेंद्र सागर ने सोशल मीडिया से साहित्यिक पत्रिकाओं को मिल रही चुनौती का ज़िक्र करते हुए कहा कि अभी भी मुद्रित पत्रिकाओं को कोई बेहतर विकल्प नहीं है. चर्चा की अध्यक्षता कर रही ममता कालिया ने साहित्यिक पत्रिकाओं के संघर्ष की एक व्यापक छवि प्रस्तुत करते हुए कहा कि साहित्यिक पत्रिकाएं समर्पित लेखकों और संपादकों के श्रम से चलती हैं. यह आज से 30 साल पहले भी सच था, और आज का भी सच है. यह पत्रिकाएं पैसे से नहीं, बल्कि साधना से निकलती हैं और जब तक इनको पसंद करने वाले पाठक हैं, तब तक यह निकलती रहेंगी. कार्यक्रम के आरंभ में अकादेमी के उपसचिव कृष्णा किंबहुने ने सभी अतिथियों का स्वागत अंगवस्त्रम पहना कर किया. सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत आज सीसीआरटी छात्रवृत्ति पा रही भरतनाट्यम नृत्यांगना हृषा टंडन एवं स्वयंजीत पात्रा ने तबला वादन प्रस्तुत किया. उनके साथ सारंगी पर संगत आरिश फै़सल ने की. शाम को ‘साहित्य मंच’ कार्यक्रम में स्पेन से पधारे 4 भाषाओं के 4 कवियों आंजेल्स ग्रेगोरी, कास्टिय्यो सुआरेस, चूस पातो तथा मारिओ ओब्रेरो ने अपनी मूल भाषा में कविताएं प्रस्तुत कीं, जिनका अंग्रेज़ी अनुवाद शुभ्रो बंद्योपाध्याय ने सुनाया. सर्वांतेस इंस्टीत्यूतो के निदेशक आस्कर पुजोल ने अंत में सारगर्भित टिप्पणी की. कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने अतिथियों का अंगवस्त्र भेंट कर स्वागत किया और अपने संक्षिप्त वक्तव्य में भारत और स्पेन के सांस्कृतिक एवं साहित्य संबंधों की परंपरा पर भी प्रकाश डाला. कार्यक्रम का संयोजन कृष्णा किंबहुने, उपसचिव साहित्य अकादेमी ने किया.