कुशीनगर: साहित्य एक सांस्कृतिक उत्पादन है. समाज को रचनाकार के प्रति एक ऋण का भाव होना चाहिए. यह बात स्थानीय बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा कथाकार प्रो केएन तिवारी के उपन्यास ‘उत्तर कबीर नंगा फ़कीर‘ पर आयोजित परिचर्चा में गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के आचार्य एवं आलोचक प्रो अनिल राय ने कही. उन्होंने कहा कि इस तरह की परिचर्चा को हमें इसी रूप में देखना चाहिए. प्रो राय ने कहा कि यह उपन्यास स्वातंत्र्योत्तर भारत के राजनीतिक ढांचे एवं भारतीय समाज के बड़े मुद्दों से सीधे तौर पर टकराता है. एक बड़ा रचनाकार दो समयांतराल के बीच एवं दो महापुरुषों के बीच किस तरह एक संवाद स्थापित कर देता है, यह उपन्यास इसका उदाहरण है.
प्रोफेसर राय ने कहा कि तिवारी हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक नायक को अपने उपन्यास में नायक बनाते हैं. यह उपन्यास एक जन अदालत है, जिसमें कबीर द्वारा प्रश्न पूछे जाते हैं एवं गांधी उनके उत्तर देते हैं. डा गौरव तिवारी ने ‘उत्तर कबीर नंगा फ़कीर‘ उपन्यास को लेखक की रचनात्मक उपलब्धि बताया तथा इसे स्वाधीन भारत की सर्जनात्मक आलोचना के रूप में देखने की वकालत की. लेखकीय वक्तव्य में प्रो केएन तिवारी ने अपने उपन्यास की रचना प्रक्रिया से सम्बन्धित कई महत्त्वपूर्ण बातें साझा की तथा अपने आगामी महाकाव्य ‘ स्त्री गाथा‘ के बारे में बताया. कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. विनोद मोहन मिश्र ने की तथा संचालन हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डा आशुतोष तिवारी ने किया. आभार हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो राजेश कुमार सिंह ने दिया. परिचर्चा में डा अभिषेक शुक्ल, प्रो अमृतांशु शुक्ल, प्रो रामभूषण मिश्र, प्रो सीमा त्रिपाठी, डा इंद्रजीत मिश्र, प्रो रेखा तिवारी, डा त्रिभुवन नाथ त्रिपाठी आदि शामिल थे.