हरिद्वार: “संत साहित्य भौतिकता और अज्ञानता से लोहा लेने का दिव्यास्त्र है. हमारे महान भक्तिकालीन कवियों और संतों ने जो कुछ रचा, उससे आज की पीढ़ी को बहुत कुछ सीखने को मिलता है.” उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के भाषा एवं आधुनिक ज्ञान विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर दिनेश चंद्र चमोला ने यह बात ‘संत साहित्य के विविध आयाम’ विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला में कही. उन्होंने कहा कि इस प्रकार के व्याख्यान न केवल विद्यार्थियों का ज्ञान बढ़ाते हैं, बल्कि जीवन को नए तरीके से जीने की नई राह भी दिखाते हैं. व्याख्यानमाला के दौरान विभिन्न विश्वविद्यालयों से उपस्थित शिक्षाविद वक्ताओं ने संत साहित्य, उसकी उपयोगिता और प्रभाव के साथ ही भारतीय संतों के जीवन, संदेश और साहित्य पर विस्तार से अपनी बात रखी.
व्याख्यानमाला के विशिष्ट अतिथि महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक के प्रो संजीव कुमार ने संत साहित्य के विभिन्न बिंदुओं पर विचार व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि कबीरदास, रविदास, नानक देव, सूरदास आदि संतों ने शब्द को परोपकारी पुरुष के अर्थ में प्रयुक्त किया है. हिंदी के संत कवियों ने आध्यात्मिक और सामाजिक दोनों विषयों पर साहित्य के माध्यम से अपना वक्तव्य प्रकट किया. उनका संपूर्ण सृजन परमात्मा की आराधना और उपासना है. इस अवसर पर विवि के कुलसचिव गिरीश कुमार अवस्थी ने विचार रखे. प्रो मंजुनाथ, डॉ सुशील उपाध्याय, डॉ सुमन प्रसाद भट्ट, सुशील कुमार चमोली, डॉ रीना अग्रवाल, डॉ धीरज, डॉ प्रवेश कुमार, डॉ कमलेश पुरोहित, डॉ शिवचरण, प्रियंका, शोधार्थी अनूप बहुखंडी, पूजा, आरती सैनी, वंशिका, वैभव, रजनी, रागनी कुमारी, सागर, डॉ माया मलिक, डॉ संतोष कुमारी आदि मौजूद रहे.