कोलकाताः स्थानीय बंगीय हिन्दी परिषद में डा अभिज्ञात के उपन्यास ‘टिप टिप बरसा पानी’ का लोकार्पण संपन्न हुआ. कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात आलोचक डा शंभुनाथ ने की. उन्होंने कहा कि सच्चाई जब हर जगह से हार जाती है, तब वह साहित्य को शरणस्थली पाती है. उन्होंने उपन्यास में उस महिला का विशेष रूप से उल्लेख किया, जो अपने पति से तलाक के लिए डेढ़ दशक अदालत में लड़ती है किन्तु तलाक के बाद जिसके कारण तलाक हुआ उसी युवती को अपने विवाह में मिली अंगूठी दे देती है और कहती है मेरे पूर्व पति का ध्यान रखे, क्योंकि वह अस्त-व्यस्त रहता है. कवि और साहित्य सुधी प्रियंकर पालीवाल ने प्रेम और काम के अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा कि भारतीय पौराणिकता में प्रेम के देवता कामदेव नहीं कृष्ण हैं. इस उपन्यास में अध्यायों का वर्गीकरण आकृष्ट करता है. यह प्रेम कथा धीरे-धीरे नहीं छलांगे मारते हुए चलती है, जिससे घबराहट होती है. कथानक में प्रेम त्रिकोण है. उन्होंने उपन्यास का असली नायक उसे बताया जो प्रेम के लिए प्रतीक्षा करता है.
परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए डॉ हितेन्द्र पटेल ने कहा कि यह उपन्यास आज को युवाओं की मनःस्थिति को पारदर्शी तरीके से दिखाता है. यह उपन्यास यथार्थ और युवाओं के सपनों के बीच एक कड़ी है. युवा रचनाकार प्रेम वत्स ने कहा कि यह आधुनिकता के मुहाने पर खड़ा उपन्यास है, जिसमें परंपरा को लेकर ऊहापोह की स्थिति है. यह नाटकीयता और द्वंद्व के जरिये युवाओं की मनोजगत को व्यक्त करता है. अनु नेवटिया ने सत्र का संचालन किया. कार्यक्रम के दूसरे सत्र में ‘कविता में प्रेम’ के तरह भव्य कविता पाठ का आयोजन हुई, जिसमें प्रेम केंद्रित कविताएं पढ़ी गईं. इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि शैलेन्द्र शांत ने किया. इस सत्र का संचालन अल्पना सिंह ने किया. इस सत्र में शामिल रचनाकारों में सेराज खान बातिश, नंदलाल रोशन, रणविजय कुमार श्रीवास्तव, रामनाथ बेखबर, रमाकान्त सिन्हा, सीमा शर्मा, भारती मिश्रा, उषा जैन, रूपम महतो, अनु नेवटिया, प्रदीप कुमार धानुक, राम नारायण झा और अल्पना सिंह शामिल थे.