नई दिल्ली: “भाषाएं केवल शब्दों का संग्रह नहीं हैं, बल्कि पीढ़ियों और समुदायों को जोड़ने वाले सेतु हैं. भाषाई गौरव को बढ़ावा देने और भाषा संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर, भारत एक जीवंत और एकीकृत भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर रहा है. सरकार भारतीय भाषाओं के विकास के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर अडिग है और देश को ‘विकसित भारत’ की ओर ले जा रही है, जो अपनी सांस्कृतिक और भाषाई संपदा को समाहित करता है.” केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी ने राजधानी में पत्रकारों से बातचीत के दौरान सांस्कृतिक विकास और राष्ट्रीय एकता में भाषाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि भाषा अपनी अपार विविधता के साथ दुनिया में एक अनूठा माडल है, जहां भाषाएं केवल संपर्क का साधन नहीं हैं, बल्कि ज्ञान, संस्कृति और परंपराओं का अमूल्य भंडार हैं. उन्होंने कहा कि भाषाएं अक्सर राजनीतिक हितों के केंद्र में रही हैं. क्षेत्रीय भाषाओं को दबाने के प्रयासों ने लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर दिया है. उदाहरण के लिए, 1835 में, मैकाले की नीतियों ने शास्त्रीय भारतीय भाषाओं को दरकिनार कर दिया और शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी को बढ़ावा दिया एवं यूरोपीय ज्ञान प्रणालियों पर जोर दिया. अत: ऐतिहासिक चुनौतियों को पहचानते हुए सरकार ने क्षेत्रीय भाषाओं को संरक्षित करने की दिशा में लगातार काम किया है तथा उन्हें सशक्तिकरण और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के शक्तिशाली साधनों के रूप में देखा है. उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को उद्धृत करते हुए कहा, ‘भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है, बल्कि हमारी संस्कृति की आत्मा है.’ रेड्डी ने कहा कि संविधान की आठवीं अनुसूची में भाषाओं को शामिल करना इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है. आरंभ में आठवीं अनुसूची में सिर्फ 14 भाषाएं शामिल थीं, जो अब बढ़कर 22 हो गई हैं. ये भाषाएं भारत की विविधता को प्रदर्शित करती हैं. सिंधी को 1967 में आठवीं अनुसूची में जोड़ा गया, जिस पर अटल बिहारी वाजपेयी ने टिप्पणी करते हुए कहा था- ‘मैं हिंदी बोलता हूं, लेकिन सिंधी मेरी मौसी है.’ कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली को संविधान की आठवीं अनुसूची में 1992 में जोड़ा गया.
रेड्डी ने बताया कि वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने 2003 में भारत की क्षेत्रीय भाषाओं के विकास के लिए अपने दृढ़ समर्थन को दोहराया और तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा पेश किए गए संशोधन के माध्यम से बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली भाषाओं को इसमें शामिल किया. संथाली को शामिल करना, आदिवासी संस्कृति और मूल्यों के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता और सम्मान को दर्शाता है. रेड्डी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय भाषाओं के विकास पर विशेष जोर दिया गया है, जैसा कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जम्मू और कश्मीर में कश्मीरी, डोगरी, उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी को आधिकारिक भाषाओं के रूप में मान्यता देकर प्रदर्शित किया गया है. यह निर्णय स्थानीय समुदायों की समावेशिता और सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है. केन्द्रीय मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखने वाली शास्त्रीय भाषाओं पर भी विशेष ध्यान दिया गया है. सरकार प्राचीन भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के लिए लगातार काम कर रही है, जो उनके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक गौरव को प्रदर्शित करता है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अक्टूबर 2024 में मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषाओं के रूप में नामित करने को मंजूरी दी, जिससे शास्त्रीय भाषाओं की कुल संख्या बढ़कर 11 हो गई है. भारत अब दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जिसने 11 शास्त्रीय भाषाओं को मान्यता दी है. इन भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की गई हैं, जैसे 2020 में संस्कृत के लिए तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित करना, अनुसंधान और अनुवाद के लिए केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान की स्थापना और केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर के तहत कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया के लिए विशेष अध्ययन केंद्र बनाना. इस क्षेत्र में उपलब्धियों को प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार, विश्वविद्यालय अध्यक्ष और विशेष केंद्र स्थापित किए गए हैं.
रेड्डी ने यह दावा किया कि आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी को भी काफी महत्त्व मिला है. आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी की मान्यता के 75 वर्ष पूरे होने पर सरकार ने विविधता का सम्मान करते हुए भाषाई एकता सुनिश्चित करते हुए इसे अन्य भारतीय भाषाओं के साथ बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिंदी को प्रदर्शित कर इसकी वैश्विक पहचान और भारतीय भाषाओं पर गर्व करने को बढ़ावा दिया है. मंत्रालयों में हिंदी सलाहकार समितियों, भारत और विदेशों में नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों और व्यापक “हिंदी शब्द सिंधु” शब्दकोश के निर्माण जैसी पहलों ने शासन और संचार में इसकी भूमिका को मजबूत किया है. भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए तकनीकी प्रगति का लाभ उठाया गया है. राष्ट्रीय भाषा अनुवाद मिशन और भाषिणी परियोजना भाषाई बाधाओं को दूर करने के लिए डिजिटल तकनीक का उपयोग करती है, जिससे विभिन्न भाषा बोलने वालों के बीच सहज संचार संभव हो पाता है. शैक्षणिक संस्थानों और एड-टेक कंपनियों को क्षेत्रीय भाषाओं में डिजिटल शिक्षण सामग्री विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है, जिससे शिक्षा अधिक सुलभ हो सके. एक भारत श्रेष्ठ भारत कार्यक्रम के तहत सौराष्ट्र तमिल संगमम् और काशी तमिल संगमम् जैसी सांस्कृतिक पहल भारत की भाषाई और सांस्कृतिक एकता का उत्सव मनाती हैं. ये कार्यक्रम क्षेत्रों के बीच ऐतिहासिक संबंधों को उजागर करते हैं और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देते हैं. दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक तमिल को संरक्षित करने पर प्रधानमंत्री का जोर सभी भारतीयों की सामूहिक जिम्मेदारी को रेखांकित करता है कि वे अपनी भाषाई विरासत की रक्षा करें और उसे समृद्ध करें.