लखनऊ: डा लक्ष्मी शंकर मिश्र निशंक अध्ययन संस्थान लखनऊ ने वर्ष 2023 के लिए अपने दो चर्चित सम्मानों की घोषणा कर दी है. वर्ष 2023 के लिए ‘डा लक्ष्मी शंकर मिश्र ‘निशंक’ साहित्य सम्मान’ डा ओम निश्चल को और ‘विद्या मिश्र लोक संस्कृति सम्मान’ डा विद्या विंदु सिंह को मिलेगा. यह सम्मान उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के निराला सभागार में आयोजित सम्मान समारोह में हिंदी संस्थान के पूर्व उपाध्यक्ष डा उदय प्रताप सिंह एवं कथाकार डा सुधाकर अदीब के सानिध्य में प्रदान किया जाएगा. विजेताओं को सम्मान राशि, प्रशस्ति-पत्र, प्रतीक चिह्न एवं अंगवस्त्र भेंट कर सम्मानित किया जाएगा. डा निशंक हिंदी की प्राच्य एवं आधुनिक काव्य परंपरा के बड़े साहित्यकारों में रहे हैं और सवैया, घनाक्षरी, कवित्त एवं हिंदी के पारंपरिक छंदों के मर्मज्ञ एवं अवधी, खड़ी बोली और ब्रज भाषा के विख्यात कवि थे.

पुरस्कृत लेखक डा ओम निश्चल की अब तक मौलिक एवं संपादित लगभग 50 कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें ‘शब्द सक्रिय हैं’, ‘मेरा दुख सिरहाने रख दो’, ,ये जीवन खिलखिलाएगा किसी दिन’, ‘द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी: सृजन और मूल्यांकन’, ‘शब्दों से गपशप’, ‘कविता के वरिष्ठ नागरिक’, ‘कवि विवेक जीवन विवेक’, ‘समकालीन हिंदी कविता: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य’, ‘कविता का भाष्य और भविष्य’, ‘कुंवर नारायण: कविता की सगुण इकाई’, ‘रामदरश मिश्र: जीवन और साहित्य’, ‘विनिबंध…कैलाश वाजपेयी’, ‘भाषा की खादी’, ‘हिंदी का समाज’, ‘खुली हथेली और तुलसीगंध’ आदि शामिल हैं. उनके चार बाल गीत संग्रह ‘कुदरत की लय’, ‘पूछ रही है चिया’, ‘हम राष्ट्र आराधन करें’ और ‘सुनो कहानी गाओ गीत’ भी प्रकाशित हैं. डा निश्चल की पहचान साहित्य सुधी आलोचक के रूप में भी है और उन्हें पूर्व में भी कई सम्मान मिल चुके हैं. वे भाषा, शिक्षा और साहित्य से जुड़ी कई समितियों के सदस्य भी रह चुके हैं. संप्रति राष्ट्रीय मानवाधिकार की पत्रिका और भारतीय शिक्षा बोर्ड की सलाहकार समिति के सदस्य हैं.

इसी तरह साहित्य की विभिन्न विधाओं में सक्रिय डा विद्या विंदु सिंह की 115 कृतियां प्रकाशित हैं, जिनमें ‘अंधेरे के दीप’, ‘फूलकली’, ‘ये बेटियां’, ‘नीरमती’, ‘शिलांतर सूखती सरिता का खत’, ‘शिवपुर की गंगा भौजी’, ‘हिरण्यगर्भा’, ‘बखरी के लोग’, ‘अपनी जमीन’, ‘बाघ बाबा का चौरा’, ‘वे डोलत रस आपने’, ‘वनदेई’, ‘काशीवास’, ‘भैरव क माई’, ‘जहां जोगिया नचावै दुइ हरिना’, ‘सड़क पर उगते बच्चे’, ‘वधूमेध’, ‘सच के पांव’, ‘अमर बल्लरी’, ‘कांटों का वन’ आदि शामिल हैं. पद्मश्री से सम्मानित डा सिंह उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से एक लंबे समय तक सम्बद्ध रही हैं. पहले प्रधान संपादक फिर उपनिदेशक और सेवानिवृत्ति के समय संयुक्त निदेशक पद को सुशोभित करने वाली डा सिंह संस्थान द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘साहित्य भारती’ जिसका प्रारंभिक नाम ‘भाषा भारती’ भी था, के संपादक के रूप में विशेष रूप से जानी जाती हैं. डा विद्या विंदु सिंह का रचना संसार अत्यन्त विस्तृत है. उनका साहित्य शोधार्थियों-विद्यार्थियों के लिए भी महत्त्वपूर्ण है. डा अमिता दुबे और अलका प्रमोद ने उन पर ‘अविरल सक्रिय सर्जक डा विद्या विंदु सिंह’ शीर्षक से किताब भी लिखी है. संस्थान के मंत्री मुकुल मिश्र द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार यह निर्णय संस्थान की निर्णायक समिति के सदस्यों डा कमला शंकर त्रिपाठी, प्रो उषा सिन्हा, योगीन्द्र द्विवेदी एवं डा आलोक मिश्र द्वारा सर्वसम्मति से लिया गया.