लखनऊ: कवि वीरेन डंगवाल के जन्मदिन के उपलक्ष्य में जन संस्कृति मंच ने विकास नगर स्थित कलाघर में कवि गोष्ठी का आयोजन किया. इस अवसर पर कौशल किशोर ने कवि के जीवन और कविता कर्म पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यों तो वीरेन डंगवाल कैंसर जैसी असाध्य बीमारी से जूझते हुए असमय चले गए. लेकिन इससे पहले भी वे सारी जिंदगी इस व्यवस्था के कैंसर से लड़ते रहे हैं. उनका रचना संसार इसका उदाहरण है. उन्होंने डंगवाल की कविता ‘इतने भले नहीं बन जाना साथी‘ का पाठ किया, जिसकी पंक्तियां थीं, ‘काफ़ी बुरा समय है साथी, गरज रहे हैं घन घमंड के नभ की फटती है छाती, अंधकार की सत्ता चिल-बिल चिल-बिल मानव-जीवन, जिस पर बिजली रह-रह अपना चाबुक चमकाती, संस्कृति के दर्पण में ये जो शक्लें हैं मुस्काती, इनकी असल समझना साथी, अपनी समझ बदलना साथी‘. कलीम खान ने पड़ा, ‘अभी ना बोलें, अभी चुनाव में बहुत समय है, अभी ना बोलें, अभी तो चुनाव की घोषणा भी नहीं हुई है, अभी ना बोलें, चुनाव चल रहा है, अभी तो बिल्कुल ना बोलें….अभी तो चुनाव समाप्त हो गया है‘.
कवि भगवान स्वरूप कटियार ने ‘सूनी आंखों में सपना बुनना‘ कविता सुनाई. जिसकी पंक्तियां हैं, ‘इस खराब वक्त में, जब लूट का बाजार गर्म हो, चारों तरफ दहशत और संवैधानिक आवारगी का माहौल हो, तब किसी पाठशाला में, अध्यापक का सच्चाई और ईमानदारी का पाठ पढ़ाना, और मजदूर का काम पर जाते हुए, मेहनत और कमाई में यकीन रखना, आवारा जानवरों से फसल बचाने के लिए, किसान का रात रात भर जागना, इस बात का सबूत है कि, जुल्मों से लड़ने की शुरुआत, अभी भी हो सकती है, और हमें यही करना है‘. कौशल किशोर ने अपनी दो कविताओं के माध्यम से वीरेन डंगवाल को याद किया. जिनकी पंक्तियां थीं, ‘उनसे पूछिए, तो सीना ठोक गर्व से अपने को लिबरल बताते हैं, गांव नगर डगर के ग्लोबल होने पर खूब इतराते हैं…‘ तो दूसरी कविता की पंक्तियां थीं, ‘जली ठूंठ पर बैठकर गई कोकिला कूक, बाल न बांका कर सकी शासन की बंदूक‘. इस गोष्ठी में कलाकार धर्मेंद्र कुमार, आलोक कुमार, फरजाना महदी, राकेश कुमार सैनी मौजूद थे.