नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी ने भारतीय साहित्य के चार उत्कृष्ट विद्वानों चंद्रशेखर कंबार, अजीत कौर, प्राण किशोर कौल और वेद राही को अपना महत्तर सदस्य बनाया है. आइए जानते हैं इन मूर्धन्य लेखकों को. चंद्रशेखर कंबार प्रतिष्ठित कन्नड़ कवि, नाटककार, लोककथाकार और फिल्म निर्माता हैं. वह हम्पी में कन्नड़ विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति, कर्नाटक नाटक अकादमी और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली और साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष रह चुके हैं. आपके 25 नाटक, 11 कविता-संग्रह, पांच उपन्यास और 16 शोध कार्य प्रकाशित हैं. आपने पांच फीचर फिल्म और कई वृत्तचित्र बनाए हैं. वह पद्म भूषण, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, कबीर सम्मान, कालिदास सम्मान, भारतीय भाषा परिषद पुरस्कार, कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार और पम्पा पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित हैं. इसी तरह अजीत कौर प्रख्यात पंजाबी कथा लेखिका हैं, जो सार्क लेखक संस्था और साहित्य और ललित कला अकादमी की संस्थापक हैं. आप 28 कहानी-संग्रह, उपन्यास, कहानी एवं कविता के 9 रचनात्मक अनुवाद तथा 20 से अधिक संपादित पुस्तकों की लेखिका हैं. साहित्य अकादेमी पुरस्कार और पद्म श्री सहित कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों की प्राप्तकर्ता कौर ‘सामूहिक नोबेल शांति पुरस्कार के लिए दुनिया भर में 1000 महिला शांति क्रूसेडर‘ में से एक हैं.
डोगरी के प्राण किशोर कौल जानेमाने अभिनेता, रंगमंच के कलाकार, निर्देशक, नाटककार, कथाकार और प्रमुख विचारक हैं. पिछली आधी सदी में उनके योगदान ने कई सांस्कृतिक प्रथाओं और परंपराओं को व्यापक जनता को कई सांस्कृतिक प्रथाओं और परंपराओं के बारे में जानकारी दी है, खासकर 1991 के बाद. वे व्यापक रूप से प्रशंसित ‘गुल गुलशन गुलफाम‘ के रचयिता हैं और उन्होंने सैकड़ों रेडियो नाटकों और कई पुस्तकों का लेखन भी किया है. वे कई बार प्रतिष्ठित आकाशवाणी वार्षिक पुरस्कार के विजेता रहे हैं और 30वें प्रिक्स इटालिया के लिए अंतरराष्ट्रीय जूरी के मनोनीत सदस्य थे, जो रेडियो और टेलीविजन के लिए सबसे प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय उत्सव है. उन्होंने पहली कश्मीरी फिल्म ‘मानजिरात‘ का निर्देशन किया और इसके अलावा, उन्होंने रेडियो कश्मीर के सबसे लंबे कार्यक्रम, ‘वादी की आवाज‘ के सिग्नेचर ट्यून को भी अपनी आवाज दी, जो लगभग 2 दशकों तक चला. वे पद्म श्री और साहित्य अकादेमी पुरस्कार सहित कई अन्य पुरस्कारों के प्राप्तकर्ता हैं. जबकि वेद राही डोगरी के प्रसिद्ध लेखक और निर्देशक हैं. उन्हें टेलीविजन धारावाहिक ‘मीराबाई‘ के लिए व्यापक प्रशंसा मिली और उन्होंने कई बॉलीवुड फिल्मों और टेलीविजन श्रृंखलाओं के लिए पटकथा और संवाद भी लिखे हैं. उन्होंने हिंदी फिल्म ‘वीर सावरकर‘ का निर्देशन भी किया, जो विनायक दामोदर सावरकर की जीवनी पर आधारित है. आपके छह उपन्यास, तीन कहानी-संग्रह, एक जीवनी आदि सहित एक दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं. उन्होंने ललद्यद की वाख़ों का सिंधी भाषा में अनुवाद भी किया है. वे डोगरी संस्कृति की लौ को जलाए रखने वाली प्रमुख हस्तियों में से एक हैं और उन्होंने देश भर में डोगरी समाज की कई परंपराओं का प्रचार किया है. उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार, महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार, कुसुमाग्रज राष्ट्रीय साहित्य पुरस्कार आदि से सम्मानित किया गया है.