वाराणसी: केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय तथा संसदीय कार्य मंत्रालय के राज्य मंत्री डा एल मुरुगन ने वाराणसी में काशी तमिल संगमम के तीसरे संस्करण का उद्घाटन किया. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संदेश में आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि प्रयागराज में महाकुंभ के बीच आयोजित होने के कारण यह अवसर और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है. प्रधानमंत्री ने तमिलनाडु और काशी, कावेरी और गंगा के बीच के अटूट संबंध पर भी प्रकाश डाला, जो कई हजार साल पुराना है. उन्होंने यह भी बताया कि पिछले दो संगमों के दौरान लोगों की दिल को छू लेने वाली भावनाओं और अनुभवों ने भारत की विविध संस्कृति की खूबसूरती के साथ-साथ लोगों के बीच मजबूत संबंधों को भी दर्शाया. केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अपने संबोधन में पांड्य राजा पराक्रम पांडियन की एक तमिल कविता ‘नीरेल्लम गंगे, नीलमेलम कासी’ उद्धृत की, जिसका अर्थ है कि सभी जल गंगा की तरह पवित्र हैं, और भारत की हर भूमि काशी की तरह पूजनीय है. उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक और भारत की सांस्कृतिक राजधानी काशी सभ्यता की समृद्ध विरासत का प्रतीक है, जबकि तमिल संस्कृति का प्रतीक तमिलनाडु भारत के प्राचीन ज्ञान और साहित्यिक गौरव का हृदय है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि कैसे तमिल लोगों ने अपनी संस्कृति और परंपराओं को दुनिया भर में फैलाया है, जहां भी वे गए हैं, वहां के जीवन को समृद्ध बनाया है. उन्होंने कहा कि यह आयोजन उत्तर और दक्षिण भारत की उत्कृष्ट परंपराओं को जोड़ने वाले सेतु का काम करता है, जो सांस्कृतिक विविधता में भारत की एकता को मजबूत करता है. यह आयोजन देश की अखंड सांस्कृतिक निरंतरता का भी जश्न मनाता है, जो एक भारत श्रेष्ठ भारत के प्रति प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है.

मंत्री प्रधान ने कहा कि सांस्कृतिक एकता भारत के राष्ट्रीय पुनरुत्थान की कुंजी है, और यह संगमम दूरियों को दूर करने और गहरी समझ को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है. मंत्री ने बताया कि केटीएस के इस संस्करण का विषय ऋषि अगस्त्य हैं, जो काशी और तमिलनाडु के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं, जो आध्यात्मिक और बौद्धिक दोनों परंपराओं में पूजनीय हैं. अपने भाषण में योगी आदित्यनाथ ने वाराणसी में केटीएस के तीसरे संस्करण के आयोजन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति आभार व्यक्त किया. उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि संगमम महाकुंभ के साथ मेल खाता है, जिसमें पहले से ही लगभग 51 करोड़ लोग भाग ले चुके हैं और उन्होंने कहा कि तमिल प्रतिनिधि भी इस भव्य समागम का हिस्सा होंगे. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह थीम भारत के समृद्ध ज्ञान और परंपराओं का प्रतिनिधित्व करती है, जो 4 एस- संत परंपरा, वैज्ञानिक, समाज सुधारक और छात्र-छात्राओं के इर्द-गिर्द घूमती है. कार्यक्रम में बोलते हुए डा एल मुरुगन ने बताया कि जिस तरह तमिल काशी जाना चाहते हैं, उसी तरह काशी के लोग रामेश्वरम जाना चाहते हैं, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह सांस्कृतिक संबंध प्राचीन काल से ही मौजूद है. डा मुरुगन ने यह भी बताया कि काशी और तमिलनाडु के बीच का संबंध 5000 वर्षों से भी पुराना है, जिसका उल्लेख रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों के साथ-साथ कुरुंजी थिनई, एट्टुथोगाई और कालीथोगाई जैसे संगम साहित्य में भी मिलता है. उन्होंने तमिल भाषा और तिरुक्कुरल की महानता को दुनिया भर में बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री के प्रति आभार व्यक्त किया. इसके अतिरिक्त उन्होंने बताया कि तिरुवल्लुवर सांस्कृतिक केंद्र स्थापित करने के प्रयास चल रहे हैं.