नई दिल्ली: “कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा दियासलाई सिर्फ एक किताब नहीं है, बल्कि बच्चों के मौलिक अधिकारों के लिए समर्पित एक आंदोलन है. यह एक किताब से कहीं बढ़कर – एक प्रेरक जीवन यात्रा का प्रमाण है.” पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा दियासलाई पर आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि यह बात कही. एक निजी किस्सा साझा करते हुए उन्होंने कहा कि किताब पढ़ने से उन्हें अपने बचपन की यादें ताजा हो गईं. उन्होंने अपनी और सत्यार्थी की यात्रा के बीच एक अद्भुत समानता देखी- जहां कोविंद कानपुर देहात के एक छोटे से गांव से निकलकर राष्ट्रपति भवन पहुंचे, वहीं सत्यार्थी की राह उन्हें एक साधारण गांव से नोबेल पुरस्कार के भव्य मंच तक ले गई. सत्यार्थी के अथक संघर्ष की सराहना करते हुए कोविंद ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बाल अधिकारों के लिए उनकी लड़ाई भारत तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि दुनिया भर में फैली. उन्होंने माना कि रास्ता आसान नहीं था, फिर भी सत्यार्थी कभी नहीं डगमगाए. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सत्यार्थी का नोबेल पुरस्कार अपने पास रखने के बजाय राष्ट्र को समर्पित करने का निर्णय उनकी गहरी देशभक्ति का प्रतिबिंब है. उन्होंने आगे कहा, “राष्ट्रपति भवन में मेरे कार्यकाल के दौरान भी सत्यार्थी मुझसे मिलने आते थे और उनके विचार हमेशा मुझे प्रेरित करते थे. उनकी आत्मकथा भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी.” राम बहादुर राय ने कहा कि ‘दियासलाई’ प्राप्त करने के बाद, उन्होंने खुद को काफी समय तक इसके कवर को देखते हुए पाया, और महसूस किया कि पूरी कथा का सार इसमें समाहित था.

कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा से एक गहन पंक्ति उद्धृत करते हुए राय ने कहा कि ‘दियासलाई’ बनने की प्रक्रिया में, मेरा जीवन भी पीड़ा के धागों से बुना गया है”- उन्होंने टिप्पणी की कि ऐसे शब्द केवल व्यक्तिगत प्रतिबिंब नहीं हैं, बल्कि सार्वभौमिक सत्य हैं जो कई लोगों के साथ प्रतिध्वनित होते हैं. उन्होंने जोर दिया कि इन अंशों को सामूहिक चेतना में जगह मिलनी चाहिए, जो पीढ़ियों से व्यक्तियों को प्रेरित करते हैं. सत्यार्थी के अटूट संकल्प पर बोलते हुए, उन्होंने कहा, “एक व्यक्ति केवल महत्त्वाकांक्षा से नहीं बल्कि करुणा की शक्ति से आगे बढ़ता है.” कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डा सच्चिदानंद जोशी ने ‘दियासलाई’ की सराहना की और कैलाश सत्यार्थी को जगत बंधु-एक ऐसा सार्वभौमिक भाई बताया जिसकी करुणा सीमाओं से परे है. उन्होंने आगे कहा कि ‘दियासलाई’ में कैद यात्रा जारी रहनी चाहिए, उन्होंने सुझाव दिया कि इसका अगला भाग ‘अखंड ज्योति’-प्रेरणा की शाश्वत ज्योति का नाम होना चाहिए. चर्चा में भाग लेने वाले सभी विद्वानों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कैलाश सत्यार्थी ने कहा, “आज हम जिस दुनिया में रह रहे हैं, वह पहले से कहीं अधिक समृद्ध है, फिर भी हम इसकी समस्याओं का समाधान करने में असमर्थ हैं. एक मुद्दे को हल करने की प्रक्रिया में, कई नई चुनौतियां सामने आती हैं.” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दुनिया की समस्याओं को संबोधित करने की कुंजी केवल करुणा ही है. दियासलाई के 24 अध्यायों में सत्यार्थी ने अपनी यात्रा का वर्णन किया है – विदिशा में एक साधारण पुलिस कांस्टेबल के परिवार में जन्म लेने से लेकर बच्चों को शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए उनके आजीवन संघर्ष तक, जिसका समापन नोबेल शांति पुरस्कार के सम्मान में हुआ. यह कार्यक्रम सत्यार्थी की सामाजिक न्याय, बाल अधिकारों और वैश्विक करुणा के प्रति आजीवन प्रतिबद्धता के साथ-साथ उनकी असाधारण यात्रा के बारे में जानकारी प्राप्त करने का एक उल्लेखनीय अवसर प्रदान करता है. संस्कृति मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने सत्यार्थी मूवमेंट फार ग्लोबल कम्पैशन के साथ मिलकर यह चर्चा आयोजित की. सामाजिक कार्यकर्ता सुमेधा कैलाश भी इस अवसर पर मौजूद थीं. कार्यक्रम का संचालन आईजीएनसीए के मीडिया सेंटर के नियंत्रक अनुराग पुनेठा ने किया.