नई दिल्ली: स्थानीय प्रेस क्लब आफ इंडिया सभागार में आयोजित समारोह में प्रथम ‘प्रकाशन संस्थान अनुवाद सम्मान‘ हिंदी के प्रख्यात पत्रकार, लेखक और अनुवादक आनंद स्वरूप वर्मा को प्रदान किया गया. वर्मा को प्रशस्ति-पत्र, प्रतीक-चिन्ह, अंगवस्त्र और 51000 रुपए की राशि प्रदान की गई. इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रोफेसर देवशंकर नवीन ने वैश्विक संस्कृति के विकास में अनुवाद के योगदान और आनंद स्वरूप वर्मा की अनुवाद चेतना पर विस्तार से अपनी बातें रखीं. निर्णायक मंडल की ओर से कवि मदन कश्यप ने कहा कि आनंद स्वरूप वर्मा में एक साथ पेशेवर निपुणता और सरोकार जन्य सजगता है. वह इस समय हिंदी के अप्रतिम अनुवादक हैं और उनके द्वारा अनूदित 2 दर्जन से अधिक पुस्तकें एक से बढ़कर एक हैं. निर्णायक मंडल के दूसरे सदस्य रवीन्द्र त्रिपाठी ने मंच का संचालन करते हुए अपनी बातें भी रखीं. उन्होंने प्रकाशन संस्थान द्वारा अनुवाद के महत्त्व को रेखांकित करने के उद्देश्य से सम्मान योजना की शुरुआत, वर्मा के चयन और उनके महत्त्व पर प्रकाश डाला.
सम्मान स्वीकार वक्तव्य में आनंद स्वरूप वर्मा ने अपने संघर्ष के दिनों को भी याद किया और अफ्रीका, नेपाल आदि की यात्राओं के दौरान किये गये अपने कार्यों की विस्तार से चर्चा की और अनुवाद कर्म के प्रति अपने सहज झुकाव पर भी प्रकाश डाला. याद रहे कि आनन्दस्वरूप वर्मा एक प्रतिबद्ध पत्रकार, लेखक, अनुवादक और एक्टिविस्ट रहे हैं. उन्होंने दो दर्जन से अधिक पुस्तकों का अनुवाद किया है. जिनमें रजनी पाम दत्त की ‘आज का भारत‘, मेरी टाइटलर की ‘भारतीय जेलों में पांच साल‘, उपिंदर सिंह की ‘प्राचीन भारत में राजनीतिक हिंसा‘, महाश्वेता देवी की ‘भारत में बंधुआ मजदूर‘, तेनजिन की ‘नन्हा भिक्षु‘, आदि शामिल है. उनकी अनूदित कृतियों में ‘मधुमय भारत‘, ‘स्वप्नदर्शी‘, ‘श्वेमो की चुनी कहानियां‘, ‘खोखला पहाड़‘, ‘पोस्ते के फूल‘, ‘झील और पहाड़ का रोमांच‘ और चार खंडों में ‘चीनी सभ्यता का इतिहास‘ शामिल हैं. प्रकाशन संस्थान के युवा निर्देशक राहुल शर्मा ने प्रशस्ति-पाठ किया और अंत में धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के स्वत्वाधिकारी हरीश चंद्र शर्मा ने किया. समारोह में बड़ी संख्या में वरिष्ठ और प्रतिष्ठित लेखक-पत्रकार उपस्थित थे.