कोलकाता: जनजातीय साहित्य जुड़े रचनाकार, जैविक कृषि वैज्ञानिक और पर्यावरणविद डा राजाराम त्रिपाठी को ‘पैरोकार साहित्य शिखर सम्मान’ से सम्मानित किया गया है. इस मौके ‘आज की साहित्यिक पत्रकारिता’ विषय पर अपने व्याख्यान में उन्होंने कहा कि साहित्य से अलग होकर पत्रकारिता नहीं हो सकती है. पत्रकारिता का संबंध जन सरोकार से होनी चाहिए. पहले पत्रकारिता में राजनीति का मिश्रण भोजन में अचार की तरह होता था. लेकिन आज की पत्रकारिता में अचार ही अचार देखने को मिलता है. बुक पोस्ट की व्यवस्था खत्म होने से छोटे पत्र-पत्रिकाओं खास कर साहित्यिक पत्रिकाओं के समक्ष चुनौतियां बढ़ी है. साहित्यिक पत्रिकाएं चलाना अब बहुत कठिन हो गया है. लेकिन फिर भी कुछ साहित्यकार और पत्रकार चुनौतियों से जुझते हुए अपनी पत्रिकाएं निकाल रहे हैं जो सराहनीय है. समाजसेवी, लेखक, संपादक विश्वम्भर नेवर ने डा राजाराम त्रिपाठी को स्मृति चिन्ह और सम्मान पत्र भेंट कर सम्मानित किया.
नेवर ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि साहित्यिक पत्रिकाओं के समक्ष आर्थिक संकट होता है. लेकिन ऐसी पत्रिकाओं के बंद होने के सिर्फ आर्थिक कारण नहीं होते हैं. साहित्यिक पत्रिका चलाने के लिए जुनून और समर्पण होनी चाहिए. पैरोकार के संपादक और संचालक अनवर हुसैन में यह जुनून और समर्पण दिखता है. इसलिए वह बारह वर्षों से चला रहे हैं और उम्मीद है आगे भी उनकी पत्रिका निकलती रहेगा. यह कार्यक्रम पैरोकार साहित्य महोत्सव के दौरान हुआ. इस अवसर पर युवा नाटककार डा मोहम्मद आसिफ आलम को पैरोकार नाट्य सम्मान, पत्रकार शंकर जालान को पैरोकार पत्रकारिता सम्मान और युवा कवयित्री सीमा गुप्ता को पैरोकार काव्य सम्मान से सम्मानित किया गया. समारोह में वरिष्ठ कवि राज्यवर्धन, विमलेश त्रिपाठी, सेराज खान बातिश, पत्रकार आफरीन हक, साहित्यकार सुरेश शा और बिमल शर्मा समेत अन्य विशिष्ट लोग उपस्थित थे. वरिष्ठ कवि डा अभिज्ञात की अध्यक्षता में कवि सम्मेलन भी हुआ जिसमें प्रधान अतिथि डा राजाराम त्रिपाठी ने अपनी बहुचर्चित कविता ‘मैं बस्तर बोल रहा हूं’ सुनाई. मंच पर उपस्थित अन्य कवियों ने भी कविता पाठ किया. राजेश ने कार्यक्रम का संचालन किया. इस मौके पर पैरोकार के विशेषांक का विमोचन भी हुआ.