रांचीः झारखंड प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकारों की भूमि है. यहां राज्य बनने के इतने वर्ष बाद भी राज्य साहित्य अकादमी का नहीं होना शर्म की बात है. यह कहना है कवि अरुण कमल का. वे झारखंड साहित्य अकादमी स्थापना संघर्ष समिति द्वारा रांची प्रेस क्लब में आयोजित सम्मान समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे. उन्होंने राज्य के राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि वे एक महीने के भीतर साहित्यिक, सांस्कृतिक और कला अकादमियों का गठन करें. उन्होंने झारखंड में बोली जाने वाली सभी बोलियों एवं भाषाओं के संरक्षण के लिए संस्थागत प्रयास करने की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने कहा कि भारत में शायद ही कोई राज्य होगा जहां साहित्य के संवर्धन के लिए कोई सरकारी संस्था नहीं होगी. उन्होंने झारखंड साहित्य अकादमी स्थापना संघर्ष समिति के संघर्ष को अपना समर्थन दिया और कहा कि वे जीवन के पक्ष में, भाषा के पक्ष में साहित्य अकादमी के गठन की मांग करते हैं.
कार्यक्रम के आरंभ में विषय प्रवेश करते हुए समिति के महासचिव नीरज नीर ने बताया कि झारखंड साहित्य अकादमी स्थापना संघर्ष समिति विभिन्न तरीकों से सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट करना चाहती है. चूंकि झारखंड में सरकार के स्तर पर यहां के साहित्यकारों को सम्मानित नहीं किया जा रहा है. इसलिए समिति ने निर्णय लिया कि हम अपने स्तर पर अपने सीमित संसाधनों से उन्हें सम्मानित करेंगे. जिन साहित्यकारों को इस अवसर पर जिन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, उनमें शंभू बादल को बिरसा मुंडा शिखर सम्मान, प्रह्लाद चंद्र दास को भारत यायावर स्मृति सम्मान, पंकज मित्र को राधाकृष्ण स्मृति सम्मान, बासु बिहारी को श्रीनिवास पानुरी सम्मान, वंदना टेटे को सुशीला समद सम्मान, विनोद राज विद्रोही को रघुनाथ स्मृति सम्मान, नरेश अग्रवाल को विनोद बिहारी महतो स्मृति सम्मान, मयंक मुरारी को डॉ रामदयाल मुंडा स्मृति सम्मान, रतन महतो को संत कवि सृष्टिधर स्मृति सम्मान और अमरेन्द्र सुमन को कॉमरेड महेंद्र प्रसाद सिंह स्मृति सम्मान शामिल है. कार्यक्रम में रांची सहित राज्य के विभिन्न स्थानों से साहित्यकार बड़ी संख्या में उपस्थित रहे.