डलहौजी: राम सरूप अणखी स्मृति कहानी गोष्ठी ‘कहानी पंजाब’ का तीन दिवसीय आयोजन डलहौजी में संपन्न हुआ. पिछले वर्षों की तरह ही अलीगढ़ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डा क्रांतिपाल के सौजन्य से हर बार आयोजित होने वाली इस गोष्ठी का आरंभ तैंतीस साल पहले साहित्यकार राम सरूप अणखी ने ही किया था. इस कार्यक्रम का उद्देश्य हर वर्ष भारतीय भाषाओं के रचनाकारों को इकट्ठा कर उनके द्वारा लिखी जा रही कहानियों का पाठ और उन पर विमर्श करना होता है. इस बार की गोष्ठी में जिन भाषाओं के कहानीकारों को इस गोष्ठी के लिए चुना गया, उनमें पंजाबी, हिंदी, कश्मीरी, डोगरी, राजस्थानी, हरियाणवी, उर्दू, बांग्ला आदि शामिल थी. इन भाषाओं के कहानीकारों के अलावा उपन्यासकार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा अन्य साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित, जामिया मिलिया इस्लामिया के पूर्व प्रोफेसर डा अब्दुल बिस्मिल्लाह विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहे. कहानीकार केसरा राम ने कार्यक्रम का संचालन किया. इन तीन दिनों में भरत ओला, हरीश, सरबजीत स्वामी, रिजवान उल हक, नजीर जावेद, जगदीप दुबे आदि कथाकारों ने अपनी कहानी का पाठ किया. इस दौरान उनके द्वारा पढ़ी गई कहानियों के शिल्प, भाषा, कथावस्तु और विचारबद्धता पर आलोचनात्मक चर्चा की गई.
डा बिस्मिल्लाह ने कहानियों की स्वतंत्र भाव से आलोचना करने के साथ ही अन्य कहानियों का उदाहरण देकर तुलनात्मक विवेचना भी प्रस्तुत की. उन्होंने समकालीन कहानी पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि कहानी में विचार खत्म हो रहा है. साथ ही इसके कहानीपन को जीवित रखना भी बहुत जरूरी है. कहानी लंबी हो या छोटी, उसमें लक्ष्य और विषयगत एकाग्रता बहुत जरूरी है. अगर आम में गुठली ही न हो तो आम का स्वाद अधूरा है. उसी प्रकार कहानी में विचार का होना बहुत जरूरी है. इस चर्चा में प्रकृति-प्रेमी राज कुमार मेहरा, राजेश्वर सिंह, डा मुकेश मिरोठा, साहित्यकार भूपिंदर सिंह बेदी, बलजीत सिंह रैना ने भी अपने अपने मत कहानी पर दिए. इस गोष्ठी से कहानीकारों का मार्गदर्शन तो हुआ ही कहानी के कहानीपन और उसके भीतर के मर्म को और अधिक सरलता से कह पाने की कला पर भी जोर देने की बात हुई. डा अब्दुल्लाह के साथ साहित्यकारों ने देर रात तक बैठकें कीं, जिसमें उन्होंने न केवल लेखकों के प्रश्नों का उत्तर दिया, बल्कि अपने जीवन, पुस्तकों आदि पर चर्चा करते हुए दर्शन, मनोविज्ञान, भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन, मध्यकालीन कविता, विदेशी और देशी भाषा में लिखी जा रही कहानियों पर संवाद किया. उन्होंने आलोचकों, लेखकों के साथ विमर्श के कितने ही किस्से सुनाए. डोगरी कहानीकार जगदीप दुबे की कहानी ‘चाखे’ की गोष्ठी में बहुत चर्चा हुई और एक अनछुए विषय पर लिखी इस कहानी को अन्य भाषाओं में भी अनुवाद करवा के प्रकाशित करवाने का एक मत से समर्थन किया गया.