नई दिल्ली:  थाईलैंड में 26 दिवसीय प्रदर्शनी के लिए बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर की अगुआई में पहुंचे 22 सदस्यीय भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने थाईलैंड के प्राचीन शहर अयुत्या का दौरा किया. इस शहर का नाम भारत में भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्या के नाम पर रखा गया है. 1350 में स्थापित अयुत्या का ऐतिहासिक शहर है जोसुखोथाई के बाद सियामी साम्राज्य की दूसरी राजधानी थी. यह 14वीं से 18वीं शताब्दी तक फला-फूला,इस दौरान यह दुनिया के सबसे बड़े और सबसे महानगरीय शहरी क्षेत्रों में से एक बन गया जो वैश्विक कूटनीति और वाणिज्य का केंद्र था. अयुत्या रणनीतिक रूप से शहर को समुद्र से जोड़ने वाली तीन नदियों से घिरे एक द्वीप पर स्थित था. इस स्थान को इसलिए चुना गया क्योंकि यह सियाम की खाड़ी के ज्वारीय क्षेत्र के ऊपर स्थित था,  इससे अन्य देशों के समुद्री युद्धपोतों द्वारा शहर पर हमले को रोका जा सकता था. इस स्थान ने शहर को मौसमी बाढ़ से बचाने में भी मदद की. बर्मी सेना ने 1767 में इस शहर पर हमला किया और तहस-नहस कर दिया. बर्मी सेना ने शहर को जला दिया और निवासियों को शहर छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया. शहर का पुनर्निर्माण उसी स्थान पर कभी नहीं किया गया और यह आज भी एक व्यापक पुरातात्त्विक स्थल के रूप में जाना जाता है.

कभी वैश्विक कूटनीति और वाणिज्य का महत्त्वपूर्ण केंद्र रहा अयुत्या अब पुरातात्त्विक महत्त्व का केन्द्र हैजिसकी विशेषता ऊंचे प्रांग और विशाल अनुपात के बौद्ध मठों के अवशेष हैंजो शहर के अतीत के आकार और इसकी वास्तुकलाभव्यता का अंदाजा देते हैं. अयुत्या की अपनी यात्रा पर राज्यपाल अर्लेकर ने कहा कि यह शहर भारतीय और थाई सभ्यता के बीच गहरे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध को दर्शाता है जिसे थाईलैंड के लोगों और सरकार ने संरक्षित कर रखा है. उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि बिहार राज्य का राज्यपाल होने के नातेजो कई बौद्ध विरासतों और बोधगया का स्थान हैऐतिहासिक शहर अयुत्या का दौरा करने का अवसर मिलना उनके लिए एक सम्मान हैवह भी खासकर ऐसे समय में जब भारत के अयोध्या शहर में राम मंदिर का उद्घाटन किया गया. उन्होंने कहा कि ये प्राचीन मंदिरमहल और खंडहर न केवल थाईलैंड के समृद्ध इतिहास और संस्कृति की गहरी समझ देते हैं बल्कि हमें आधुनिक थाईलैंड की सांस्कृतिक जड़ों और विरासत की गहराई को समझने में भी मदद करते हैं. राज्यपाल ने यह भी कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए उपाय किए जाने चाहिए कि भारत में लोग इस सांस्कृतिक जुड़ाव और दुनिया भर में भारतीय संस्कृति के प्रसार के बारे में जागरूक हों.