नई दिल्ली: “विश्व की एक बटा छः आबादी का घर ‘भारत‘ विश्व का आध्यात्मिक केंद्र है. हमारी 5000 साल की सभ्यता इसे हर मायने में प्रकट करती है, और इसे वर्तमान में अधिक सार्थक तरीके से दुनिया भर में प्रसारित किया गया है.” यह बात उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने प्रो रमन मित्तल और डा सीमा सिंह की पुस्तक ‘द ला एंड स्पिरिचुअलिटी: रीकनेक्टिंग द बांड‘ का विमोचन करते हुए कही. भारत द्वारा जी20 की अध्यक्षता का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जब इस देश के हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में लगभग 60 स्थानों पर जी20 समारोह आयोजित किए गए और मुख्य समारोह भारत मंडपम और यशोभूमि पर आयोजित किए गए तब दुनिया को इस महान राष्ट्र की आध्यात्मिकता से प्रत्यक्ष रूप से अवगत होने का अवसर मिला. उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारे लिए यह विचार करने का समय है कि हम अपनी सदियों पुरानी विरासत को कैसे कायम रखें, जो कई तरीकों से कड़ी मेहनत से अर्जित की गई है. संसद सदस्यों से संवाद का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि एक बार मैंने जानना चाहा कि उनमें से कितने लोगों ने हमारे वेदों, उपनिषदों, और पुराणों को प्रत्यक्षतः देखा है? जबकि हम आए दिन उनके बारे में बात करते हैं, लेकिन क्या आप वास्तव में इसकी गहराई तक गए हैं? इसीलिए मैंने सभी सांसदों को वेद उपलब्ध कराने का सुझाव दिया है.
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि वेदों को अपने सिरहाने रखने से मानवता का बहुत कल्याण होगा क्योंकि जो मनुष्य वेदों को आधार बनाएगा, वह अपनी आत्मा से बोलेगा, न कि अपने तुच्छ हृदय से. जब कोई बुद्धि का उपयोग करके बोलता है, तो उस पर तर्क हावी हो जाता है; जब कोई दिल से बोलता है, तो उसमें भावुकता हावी होती है, लेकिन जब आत्मा इन सबका समाहार करती है, तो हमारी दृष्टि बहुत अलग हो जाती है. उन्होंने कहा कि भारत ने अपने कालजयी ग्रंथों, दार्शनिक आलेखों और सांस्कृतिक प्रथाओं के माध्यम से अपनी 5000 वर्षों की सभ्यता के दौरान दुनिया भर में ‘धर्म‘ और ‘अध्यात्म‘ का संदेश दिया है. उन्होंने कहा कि कानून का शासन मोटे तौर पर लोग क्या कर सकते हैं और क्या नहीं को परिभाषित करता है. कानून का पालन लोकतंत्र का सार तत्व है. ऐसे शासक रहे हैं जहां कानून का पालन लोकतंत्र में कहीं अधिक प्रभावी ढंग से हुआ है. लेकिन लोकतंत्र का सार, लोकतंत्र का अमृत ‘कानून का शासन‘ है, जो कानून के समक्ष समानता की अवधारणा के साथ गहराई से जुड़ा है. यदि कानून के समक्ष समानता नहीं है तो लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं है. कानून के समक्ष समानता का एक सीधा परिणाम यह होता है कि असमानताएं समाप्त हो जाती हैं. यदि सभी के साथ समान व्यवहार किया जाए तो किसी को कोई शिकायत नहीं होगी. शिकायतें तब जन्म लेती हैं जब हम पक्षपात में संलग्न होते हैं, जब हम एक ऐसे तंत्र में विश्वास करते हैं जो योग्यता के विपरीत है. इसलिए कानून के समक्ष समानता का तंत्र लोकतांत्रिक अधिकारों, मानवता के उत्कर्ष और लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए मौलिक है.