लखनऊः स्थानीय हिंदी संस्थान स्थित निराला सभागार में नवसृजन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था द्वारा साहित्यकार त्रिवेणी प्रसाद दुबे ‘मनीष’ के 3 निबंध संग्रहों का लोकार्पण हुआ. दुबे के येन निबंध संग्रह हैं ‘मानव मन की सीमा रेखा’, ‘समाज संस्कार और साहित्य’ और ‘भारत, भारतीय संस्कृति और उसकी अनमोल धरोहर’. लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता प्रोफेसर वीजी गोस्वामी ने की. इस दौरान विशेष अतिथि के रूप में महेश चंद्र द्विवेदी, प्रोफेसर उषा सिन्हा, डॉ सुलतान शाकिर हाशमी और आत्म प्रकाश मिश्रा ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. कार्यक्रम में नवसृजन संस्था द्वारा सभी अतिथियों को स्मऋति चिह्न और अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया. कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के सामने दीप प्रज्ज्वलन से हुई. जिसके बाद डॉ योगेश और अनिल किशोर शुक्ल ‘निडर’ ने वाणी वंदना प्रस्तुत की. फिर तेज नारायण श्रीवास्तव ‘राही’ ने ‘मैं उनका स्वागत करता हूं’ कविता गाकर सभी अतिथियों का स्वागत किया.

मुख्य वक्ता डॉ गोपाल कृष्ण ‘मृदुल’ ने त्रिवेणी प्रसाद दुबे ‘मनीष’ की लोकार्पित कृति ‘भारत, भारतीय संस्कृति और उसकी अनमोल धरोहर’ पर अपने विचार रखे तो डॉ शिव मंगल ने ‘समाज, संस्कार और साहित्य’ पर और डॉ योगेश ने ‘मानव मन की सीमा रेखा’ पर बात की. इस दौरान मुकेश कुमार मिश्र ने त्रिवेणी प्रसाद का जीवन परिचय श्रोताओं के सामने रखा. उन्होंने बताया कि त्रिवेणी प्रसाद दुबे ‘मनीष’ का जन्म 1955 में प्रयाग में हुआ. वन विभाग से सेवानिवृत्त त्रिवेणी प्रसाद हिंदी साहित्य में अपनी अलग पहचान रखते हैं. उन्होंने अंग्रेजी में भी 1 उपन्यास लिखा है. उनकी कई अन्य रचनाएं भी प्रकाशित हैं. दूरदर्शन लखनऊ केंद्र के सहायक निदेशक आत्म प्रकाश मिश्रा ने भारतीय सभ्यता के इतिहास पर बात की और कहा कि त्रिवेणी प्रसाद आज 68 वर्ष की उम्र में भी साहित्यिक सेवा में लगे हैं. उनके इस जज्बे की जितनी तारीफ की जाए कम है.