वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित प्रो. बाबूराम त्रिपाठी के उपन्यास, ‘यशोधरा की आत्मकथा’ का लोकार्पण एवं परिचर्चा का आयोजन, केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान, सारनाथ, वाराणसी के सभागार में शनिवार को किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत लेखिका डॉ. अलका सरावगी विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थित रहीं। उन्होंने यशोधरा के चरित्र को नये सन्दर्भ में प्रस्तुत करते हुए कहा कि इस उपन्यास में यशोधरा एक नये स्वतंत्रचेत्ता के रूप में अभिव्यक्त हुई है। यहाँ यह कृति गद्य रूप में यशोधरा के चरित्र को नये कास्ट में गढ़ते हुए दिखाई देती है। यह कथा मैथिलीशरण गुप्त के यशोधरा से एक अलग क़िस्म से उपस्थित होती है। यहाँ एक परित्यक्ता स्त्री की प्रताणना, संवेदना को एक पुरुष द्वारा गद्य रूप में व्यक्त किया गया है। यह उपन्यास यशोधरा के चरित्र को नये परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करता है। यहाँ यशोधरा बहुत सारे सवालों से जूझती है, यहाँ हिन्दी कथा साहित्य अपने को नया करता प्रतीत होता है। उन्होंने कहा कि इतनी स्वतन्त्रता मैथिलीशरण गुप्त के यशोधरा में नहीं दिखाई देती है। इस दृष्टि से यह उपन्यास एक नयापन लिए नए परिप्रेक्ष्य और सन्दर्भ को प्रस्तुत करता है। इसके लिए लेखिका ने प्रो. बाबूराम त्रिपाठी को साधुवाद दिया। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता डॉ. अलका सरावगी के अतिरिक्त अन्य वक्ता डॉ. सत्य प्रकाश पाल, हिमांशु उपाध्याय, डॉ. सदानंद सिंह, प्रो. सुमन जैन, प्रो. श्रद्धानन्द जी, प्रो. जितेन्द्र नाथ मिश्र सहित कई वक्ताओं ने इस कृति पर अपने विचार व्यक्त किये।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्थान के कुलपति प्रो. गेशे नगवांग समतेन ने कहा कि प्रो. बाबूराम त्रिपाठी ने अपने इस उपन्यास के माध्यम से यशोधरा के त्याग और समर्पण को दिखाने का सफल प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि भारतीय इतिहास में जितने भी महापुरुष हुए हैं, उन्होंने लोक कल्याण के मार्ग में स्वार्थ प्रवृत्ति को नहीं आने दिया, क्योंकि स्वार्थ से भरा हुआ चरित्र कभी भी कल्याण की कामना नहीं कर सकता है। जब तक मनुष्य स्वार्थ और मोह माया के दलदल में फंसा रहेगा तब तक वह लोक हित की भावना से दूर रहेगा। परमार्थ, मैत्री, दया, करुणा, त्याग से ही सुन्दर संसार का निर्माण हो सकता है । इसी सन्देश को प्रो. बाबूराम त्रिपाठी ने अपने इस उपन्यास ‘यशोधरा की आत्मकथा’ में व्यक्त करने का एक सार्थक प्रयास किया है। कार्यक्रम का संचालन प्रो. राम सुधार सिंह ने किया तथा अरुण महेश्वरी, चेयरमैन एवं प्रबन्ध निदेशक, वाणी प्रकाशन ग्रुप ने सभी अतिथियों का स्वागत संबोधन किया। वाणी प्रकाशन ग्रुप की कार्यकारी निदेशक अदिति माहेश्वरी-गोयल ने पुस्तक पर सम्पादकीय दृष्टि से विवेचना प्रस्तुत की।
कार्यक्रम के अन्त में डॉ. हिमांशु पाण्डेय, कुलसचिव, केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान, सारनाथ, वाराणसी ने सभी सम्मानित विद्वानों को धन्यवाद ज्ञापित किया। उपरोक्त कार्यक्रम में प्रो. धर्मदत्त चतुर्वेदी, डॉ. अनुराग त्रिपाठी, प्रो. उमेश चन्द्र सिंह, डॉ. रमेश चन्द्र नेगी, डॉ. शुचिता शर्मा, डॉ. सुशील कुमार सिंह, डॉ. रवि रंजन द्विवेदी, अमित कुमार विश्वकर्मा सहित सैकड़ो की संख्या में छात्र-छात्रा उपस्थित रहे।