नई दिल्ली: विश्व पुस्तक दिवस के अवसर पर साहित्य अकादेमी ने ‘पुस्तकों का महत्त्व’ विषयक परिसंवाद आयोजित किया, जिसकी अध्यक्षता नवतेज सरना ने की. इस परिसंवाद में अदिति महेश्वरी गोयल, धनंजय सिंह, इरा टाक, मैत्रेयी पुष्पा, मेजर अखिल प्रताप, मोलिश्री, संजय श्रोत्रिय, शालीना चतुर्वेदी, स्मिता सहगल, सुजाता शिवेन, सुमित्रा गुहा तथा सुपर्णा देव ने अपने-अपने वक्तव्य प्रस्तुत किए. आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने सभी का स्वागत अंगवस्त्रम एवं साहित्य अकादेमी का प्रकाशन भेंट करके किया. अपने स्वागत वक्तव्य में उन्होंने कहा कि किताबें हमारे जीवन का हिस्सा हैं और वह हमारे लिए नई दुनिया का विकल्प प्रस्तुत करती हैं. अकादेमी पुस्तक प्रकाशन के अपने दायित्व को लगातार परिष्कृत और बेहतर बनाती रहेगी. प्रकाशक अदिति महेश्वरी ने कहा कि हमारे देश में अभिव्यक्ति की आजादी के चलते लेखन की विविधता सबसे अधिक है. विश्व पुस्तक मेलों के अपने अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं के साहित्य को पढ़ने की ललक विदेशों में बहुत तेजी से बढ़ी है. धनंजय सिंह ने कहा कि किताबें हमारा व्यक्तित्व बदलती हैं और वह समय की विराट परिधि को भी लांघती हैं. पुस्तकों का महत्त्व अवर्णनीय और असीमित है. उन्होंने मांडूक्य उपनिषद से उदाहरण देते हुए कहा कि शब्द दीपक की तरह है और उससे भारतीय संस्कृति को समझना संभव है. उन्होंने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में भी पुस्तकों की भूमिका का उल्लेख किया.

कथाकार मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि पुस्तकें समाज के नाम लिखे पत्र हैं, जिनमें वास्तविक सच्चाइयां होती हैं. साहित्य रंक से राजा बनाता है और निडर तथा निर्भीक भी. मेजर अखिल प्रताप ने कहा कि किताबों के स्पर्श का सुख हमें कोई और तकनीक नहीं दे सकती, अतः उनका महत्त्व कभी भी कम नहीं होगा. उन्होंने भारतीय सिनेमा को विभिन्न पुस्तकों से कहानी चुनने का प्रस्ताव भी रखा. कथक नृत्यांगना शालीना चतुर्वेदी ने कहा कि हमारे लिए कथा बताने का मतलब ही कथक है. उन्होंने भरत मुनि द्वारा लिखी नाट्यशास्त्र की प्रशंसा करते हुए कहा कि हमारी संस्कृति की सारी चेष्टाएं अंकित हैं. कवि स्मिता सहगल ने कहा कि किताबें हमारे अतीत को संरक्षित करती हैं. उन्होंने कई अमर पात्रों का जिक्र करते हुए कहा कि वह हमें दुनिया की अनिश्चितता से लड़ने के लिए तैयार करते हैं. अनुवादक सुजाता शिवेन ने कहा कि किताबें हमारी भाषा को परिमार्जित करती है और हमारे विचारों को बदलती है. शास्त्रीय गायिका सुमित्रा गुहा ने कहा कि संगीत साहित्य का ही विस्तार है. हमें आगामी पीढ़ी को किताबों की थाती सौंपनी चाहिए. भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी सुर्पणा देव ने कहा कि पुस्तकें हमें जीवन जीने की कला सिखाती हैं और हम उनके सहारे अनेक कुरीतियों पर विजय पा सकते हैं. किताबों में हमारी सभ्यता जीवित रहती है और वह हमें भविष्य की राह दिखाती है. अंत में परिसंवाद के अध्यक्ष पूर्व राजनयिक एवं लेखक नवतेज सरना ने कहा कि सभ्यता और संस्कार पुस्तकालय में ही बनते हैं. अतः हमें पुस्तकों को बचाने के लिए व्यस्थित ढंग से काम करना होगा. अकेले साहित्य अकादेमी यह दायित्व नहीं उठा सकती. सुझाव देते हुए उन्होंने कहा कि हमें अपने घरों में पुस्तकें लाने को उत्सव के रूप में मनाना होगा, पुस्तकालयों की ख़राब होती स्थिति को संभालना होगा तथा पूरे देश के लिए एक पुस्तकालय कानून निर्धारित करना होगा जिससे कि पुस्तकालयों को बजट आदि की कोई समस्या न रहे.