नई दिल्ली: हिंदी दिवस पर राजधानी के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में आयोजित जागरण ‘संवादी‘ के दौरान ‘सिनेमासमाज और संस्कृति‘ विषयक सत्र में केंद्र के सदस्य सचिव डा सच्चिदानंद जोशी ने हिंदी में सिनेमा पर श्रेष्ठ शोधपरक साहित्य की कमी पर चिंता जताई. उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि सिनेमा पर अधिकतर अच्छा साहित्य अंग्रेजी में है. यह इसलिए भी है कि अभिनेता फिल्में तो हिंदी में करते हैंलेकिन साक्षात्कार देते अंग्रेजी में हैं. डा जोशी ने फिल्मों के अकादमिक महत्त्व पर प्रकाश डाला और कहा कि इसे कला के रूप में भी प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए. डा जोशी ने फिल्मों के गहरे प्रभाव पर विस्तार से प्रकाश डाला कहा कि समाज पर फिल्मों के प्रभाव का ही नतीजा है कि फिल्म और दर्शकदोनों में ही प्रौढ़ता आ रही है. एक वक्त था जब सिनेमा में मनोरंजनसमानांतर तथा कलात्मक फिल्मों की अलग-अलग धारा थीपर अब ऐसी कई फिल्में बन रही हैजो मनोरंजक होने के साथ ही ऐसे विषयों को भी छू रही हैंजिन पर समाज बात करने से हिचकता है. डा जोशी ने अपने वक्तव्य में समाज और सिनेमा की एकरूपता का जिक्र करते हुए कहा कि सिनेमा समाज का दर्पण है या समाज सिनेमा का दर्पण हैयह भेद अब मिट रहा है. सिनेमा के दृश्यों ने अब संस्कृति व परंपरा में भी व्यापाक पैठ बना ली है.

इस सत्र में प्रख्यात संस्कृतिकर्मीभाषा सेवी और प्रभा खेतान फाउंडेशन के प्रबंध न्यासी संदीप भूतोड़िया ने भी अपने विचार व्यक्त किए. उन्होंने फिल्मों के अनंत आकाश पर विस्तार से प्रकाश डाला. भूतोड़िया ने कहा कि भारतीय सिनेमा ने हर उस विषय को छुआजिससे हमारा समाज प्रभावित होता है. इनमें सामाजिक मुद्देधर्मराजनीतिमहिला सशक्तीकरणखेलविज्ञानव्यक्तित्वदेशभक्ति सभी शामिल हैं. भारतीय सिनेमा जगत ने इन सभी विषयों को केवल मनोरंजन के ही नहींबल्कि विचार संप्रेषण की पृष्ठभूमि के रूप में चुना. समाज और संस्कृति के फिल्मों से जुड़ाव को इसी से समझा जा सकता है कि भारी बजट की फिल्म ‘आदिपुरुष‘ को तमाम प्रचार के बावजूद अपने दृश्य और संवाद के चलते आलोचना का शिकार होना पड़ता है. उन्होंने कहा कि भारतीय सिनेमा जगत और यहां बनी फिल्मों ने भौगोलिक सीमा को लांघा और अपनी अंतर्राष्ट्रीय पहचान बनाई. इस सत्र का संचालन दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर और फिल्मी लेखन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार स्वर्ण कमल से सम्मानित लेखक अनंत विजय ने किया. उन्होंने अपने वक्तव्य में फिल्मों के स्याह पक्ष को भी उजागर किया.