जयपुर: ‘मात शारदे वीणा-पाणि हे कल्याणी! आज झमाझम करदे मां. यहां वहां हरियाली हो, खुशहाली हो. हर दिन होली, हर दिन ईद-दिवाली हो.‘ डाक्टर काव्या मिश्रा की इस सरस्वती वंदना से जयपुर के 296वें स्थापना दिवस एवं दीपोत्सव पर समरस साहित्य सृजन संस्थान की जयपुर इकाई एवं जयपुर काव्य साधक की 10वीं मासिक काव्य-गोष्ठी की शुरुआत हुई. विशिष्ट अतिथि श्याम सिंह राजपुरोहित तथा मुकेश गुप्त ‘राज‘ थे. अध्यक्षता समरस संस्थान की स्थानीय इकाई के अध्यक्ष गीतकार लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला ने की. गोष्ठी में अमित तिवारी ‘आजाद‘ ने कृष्ण और भीष्म के संवाद पर आधारित ‘भीष्म तुम्हारे पौरुष पर एक जटायु भारी है, तुम तो पड़े शरशैय्या पर, वह राम-गोद अधिकारी है. तुम एक प्रतिज्ञा खातिर सब कुछ भुला बैठे, आंखों के सम्मुख द्रौपदी की अस्मत लुटवा बैठे,’ रचना सुनाकर सोचने पर मजबूर कर दिया. वैद्य भगवान सहाय पारीक, डा एनएल शर्मा, बाल कवि मेहुल पारीक, बनवारी लाल ने सुंदर रचनाएं सुनाई. जकासा संस्थापक किशोर पारीक ‘किशोर‘ ने, ‘लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी, अपनी ताकत को जानो. एक वोट की असली कीमत, क्या होती है पहचानो‘ और ‘संस्कृति और संस्कारों का महत्त्व दिखाया राम ने…सुनाकर माहौल को राममय कर दिया.
राव शिवराजपाल सिंह ने, ‘सूरदासों के शहर में ऐनक बांटने का नहीं फायदा‘ जैसी कई व्यंग्य रचनाएं और क्षणिकाएं सुनाईं. वरुण चतुर्वेदी ने ‘नदी किनारे खड़े पेड़ पर पानी का उपवास लिखा, बूढ़े बरगद के बल्कल पर इतिहास लिखा‘ के साथ ही ब्रज भाषा में ‘अंसुवन में मोरी गंगा सी मैया‘ सुनाकर दाद पाई. नीता भारद्वाज ने ‘आओ मेरे राम आओ, नेह की कुटिया छबीली‘; ‘दीपो के त्योहार फिर मिली सौगात है, पथ के अंधियार ने फिर खाई एक बार मात है‘ और ‘अहिल्या सा धीरज चाहिए, यदि चाहो चरणों से उद्धार तो‘ जैसी सरस रचना सुनाई. गोपकुमार मिश्र ने ‘गोपी चंदन, जोड़ी रुकमिनी सूं, बरजोरी गोपिन संग, प्रीति की पींग राधा रानी संग बढ़ाई है‘ सुनाया, तो डा मुकेश गुप्त ‘राज‘ ने सुंदर गीत और घनाक्षरी छंद सुनाए. श्याम सिंह राजपुरोहित ने ‘आंसुओं से कहीं उनकी तकदीर धुल न जाये. हाजिर हूं मैं एक कोरे कागज की तरह, कुछ लिख सको तो ठीक वरना जला देना. तुम बस अपनी कश्ती को बचा लेना‘. जैसी रचना पढ़ी, तो डा काव्या मिश्रा ने ‘मैं फकत शब्द हूं, मुझ को छूकर महकती सुगंध बना दे. अहसास का मधुमास लिए बैठी हूं, मैं कली तू अलि, मकरंद बना दे,’ सुनाकर माहौल को प्रेममय कर दिया. लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला ने ‘नगर गुलाबी की है देखो, जग भर में पहचान, गोविंद ही आराध्य इसके, बनी रहे यह शान‘ और ‘मन के दूर विकार सभी हो, तभी तमस का नाश. दीनों के घर करें उजाला, फैले खूब प्रकाश‘ जैसी रचना सुनाई. वैद्य भगवान सहाय पारिक ने आभार प्रकट किया. गोष्ठी का संचालन राव शिवराज पाल सिंह ने किया.