आगरा: नगर में मानस अनुरागी इंद्रजीत सिंह भदौरिया की स्मृति में वृहद साहित्य संगोष्ठी एवं कविता समारोह का आयोजन हुआ हुआ. कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के चित्र के समक्ष दीपक जलाकर हुआ. कार्यक्रम की अध्यक्षता डा राजेंद्र मिलन ने की. संचालन सुशील सरित ने किया. कार्यक्रम के प्रथम सत्र में साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. ‘संचार क्रांति का हिंदी साहित्य पर प्रभाव‘ विषय पर साहित्य मनीषियों ने अपने उद्गार प्रस्तुत किये. आयोजक हरीश कुमार सिंह भदौरिया ने कि कहा सूचना प्रौद्योगिकी के इस प्रभावशाली दौर में मातृभाषा के वर्चस्व में बढ़ोत्तरी हुई है. डाटा क्रांति के कारण जो बदलाव हुए हैं उनका साक्षी बनने का सुनहरा अवसर इस पीढ़ी को मिल रहा है. विषय परिवर्तन करते हुए अन्नपूर्णा मालवीय ने कहा कि भारत आज विश्व का सबसे युवा देश है. इसलिए युवाओं की सोच-विचार, आचार-व्यवहार और भी महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं. कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में काव्य समारोह में दिल्ली, कानपुर, प्रयागराज, रायबरेली, ग्वालियर, मेरठ, जयपुर, मथुरा और आगरा के कवियों ने काव्य पाठ में हास्य, शृंगार और वीर रस की कविताओं से जमकर तालियां बटोरीं. कार्यक्रम में हरीश कुमार भदौरिया की पुस्तक ‘संचार क्रांति का हिंदी साहित्य पर प्रभाव‘ एवं ‘अहिल्या पत्थर की हो गई‘ पुस्तक का विमोचन भी हुआ.
“जलवा फरोश हैं आज जिनकी वजह से हम, वो जिंदगी की खुशियां मेरे नाम कर गए. जो है वजूद मेरा वह इशरत ओ मुहतरम, वह हाथ मेरे सर से देखो कब सरक गए…” हरीश कुमार सिंह भदोरिया की इन पंक्तियों से इस कवि गोष्ठी की बानगी आपको मिल गयी होगी. डा हेमलता सुमन ने पिता की भूमिका बताते हुए पढ़ा, ‘पिता ब्रह्मा है पिता ईश हैं, पिता जगत के पालक हैं. जीवन रूपी गाड़ी के यह कुशल महा संचालक हैं.‘ डा शेशपाल सिंह शेष ने पढ़ा, ‘मिला जन्म तो सबसे पहले, मां जी को पहचाना है. समय गुजर जाने पर हमने पूज्य पिता को जाना है.‘ इसी कड़ी में रामेंद्र कुमार शर्मा रवि ने ‘पीपल बरगद सम पिता ऊंचे पर्वतराज. चढ़े पुत्र उन्नत शिखर पिता करे वो काज..‘ सुनाया. सुधीर कुमार सिंह सुधाकर ने ‘मेरा कमरा वह कब तेरा कमरा हो गया…‘ पढ़ा तो केंद्रीय हिंदी संस्थान की प्रो वीणा शर्मा ने कहा, ‘पिता का अभिमान होती है संतान. बनाए रखें जो इसे तो कहलाती महान…‘ विनय बंसल, लुल्लू कानपुरी ने ‘ये देश बूचड़खाना बन गया है. दरिंदों का ठिकाना बन गया है…‘ पढ़कर व्यवस्था पर चोट किया. कुमारी डा शशि जायसवाल ने मैं पिता पूज्य के चरणों में, करती वन्दन हूं सुबहो-शाम… मुक्ति सिकरवार, डा रितु अग्रवाल, रामकुमार, इंद्रेश भदोरिया, डा नीता सरोजिनी, मीरा परिहार, मीना राजू वर्मा, रामेंद्र कुमार शर्मा रवि, मदन मुरादाबादी, सीमा गर्ग, रिया अग्रवाल, श्याम जीत श्याम आदि ने काव्य पाठ किया.