कोलकाताः “साहित्य में कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी छाप नहीं छोड़ी, उन्होंने कई क्षेत्रों को छूते हुए नए आयाम गढ़ने का काम किया.” केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने 162वीं रवीन्द्र जयंती समारोह में बतौर मुख्य अतिथि यह बात कही. उन्होंने कहा कि हम एक ऐसे व्यक्ति की जयंती पर एकत्रित हुए हैं जिनके लिए महामानव शब्द छोटा पड़ जाता है. गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर सच्चे अर्थों में विश्व मानव थे. केवल देश या कला के क्षेत्र में नहीं बल्कि विश्व के अनेक क्षेत्रों में उनका योगदान बहुत बड़ा था. कवि गुरु आज़ादी के हर नेता के प्रेरणास्रोत वे भारत के कलाजगत की विश्व में अभिव्यक्ति का सबसे बड़े माध्यम थे. साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले भारतीय का सम्मान भी उन्हें मिला. शांति निकेतन की स्थापना ने शिक्षा के क्षेत्र में अमिट योगदान दिया. विद्यार्थी के अंदर की सारी क्षमताओं को अनंत ऊंचाई तक ले जाने वाली शिक्षा की शुरुआत के साथ ही उन्होंने ब्रह्म समाज और उपनिषद के संदेश को भी समाज में स्थापित करने का प्रयास किया.
शाह ने कहा कि गुरुदेव का गुजरात और गुजरात के साहित्य के साथ भी बहुत गहरा रिश्ता रहा. उन्होंने गांधी जी को महात्मा और गांधी जी ने कवि गुरु को गुरुदेव कहकर पूरे विश्व के सामने सम्मानित करने का काम किया. उनके विचारों की परछाई नेताजी सुभाष के पूरे जीवन पर दिखाई देती है. गुरुदेव और साहित्य एक-दूसरे के पर्याय हैं. उन्होंने अपना पूरा जीवन साहित्य के हर क्षेत्र में सृजनात्मक योगदान करते हुए बिताया. उन्होंने व्यक्तिगत आज़ादी बनाम मुक्ति पर बहस में भी बहुत अच्छे तरीके से हिस्सा लिया और व्यक्तिगत आज़ादी की यूरोपीय सोच को नकारा. शाह ने कहा कि कवि, आंदोलनकारी और शिक्षाविद के रूप में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर को बहुत लोग जानते हैं, लेकिन सहकारिता क्षेत्र में भी उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है. जब गुरूदेव को 1913 में नोबेल पुरस्कार मिला तो उन्होंने उस पुरस्कार की राशि का कृषि सहकारिता बैंक में निवेश करके अपने पुश्तैनी गांव पाटीसर में सहकारिता बैंक की स्थापना की. गुरुदेव के जीवन पर पिता, परिवार और हिंदू परंपराओं का बहुत प्रभाव देखने को मिला. उन्होंने अपनी मातृभाषा बांग्ला की शिक्षा पर बहुत बल दिया और उनकी हर रचना में भारतीय दर्शन व विचार पर बल साफ दिखाई देता है.