जमशेदपुर: गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर के 163वीं जयंती पर देश के कई राज्यों में कार्यक्रम हुए. जामताड़ा के सरखेलडीह मोड़ पर गुरुदेव की संगमरमर से प्रतिमा स्थापित हुई, जिसमें शहर के बांग्ला भाषी समाज और गणमान्य लोग उपस्थित हुए. वरिष्ठ समाजसेवी देवाशीष सर्खेल ने बताया कि सन 1861 में कोलकाता ठाकुरबाड़ी में गुरुदेव का जन्म हुआ था और 1941 में इसी ठाकुरबाड़ी में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली. सर्खेल ने कहा कि भारतीय साहित्य, दर्शन और काव्य रचना में गुरुदेव की कोई सानी नहीं है. भारत के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता के नाम के रूप में गुरुदेव का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा हुआ है. उनकी रचनाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं. सर्खेल ने कहा कि मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा की उपाधि देने वाले गुरुदेव रविंद्र नाथ ठाकुर ही थे. अवसर पर शिल्पी सर्खेल, गार्गी सर्खेल, तनुश्री खां आदि के द्वारा रविंद्र संगीत प्रस्तुत किया गया. इस मौके पर प्रताप सिंह, हृदय रंजन दत्त, अरूप मित्रा, शंकर सर्खेल, सचिन्द्रनाथ घोष, प्रदीप सरकार, लालटू सरकार, अरुण राय, देवजीत सर्खेल, समीर दत्ता, अनूप सर्खेल, तन्मय सर्खेल सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित थे.
उधर जमशेदपुर के डीबीएमएस कालेज आफ एजुकेशन के सभागार में भी टैगोर की जयंती मनाई गई. कार्यक्रम की शुरुआत महाविद्यालय के अध्यक्ष बी चंद्रशेखर, सचिव श्रीप्रिया धर्मराजन, सचिव गवर्निंग बाडी सतीश सिंह, प्राचार्या डा जूही समर्पिता एवं उप-प्राचार्या डा मोनिका उप्पल द्वारा टैगोर के चित्र पर पुष्प अर्पण एवं दीप प्रज्वलन से हुई. चंद्रशेखर ने बताया कि टैगोर के साथ यह स्वामी चिन्मयानंद की भी जयंती है. रविन्द्रनाथ के नाम से पूरे विश्व में भारत को जाना जाता है. इसलिए उन्हें विश्व गुरु कहते हैं. इस अवसर पर गीतांजलि की मौलिक लिखावट को पीपीटी पर दिखाया गया. सुमेधा ने सुंदर नृत्य किया. पामेला घोष दत्ता ने नाटक के माध्यम से शांति निकेतन का इतिहास बताया और वर्तमान की गतिविधियों पर प्रकाश डाला. अमृता चौधरी, अंजली गणेशन तथा पामेला घोष दत्ता ने बांग्ला गीतों को प्रस्तुत किया. कार्यक्रम में अर्पिता, सुमेधा, शुभांगी, निस्तला शैलजा, अश्रीता, निकीता, मणिमाला, अंतरा, दिया, नेहा, मामुनी, आकांक्षा ने खास भूमिका निभाई. अंकुर ने तकनीकी सहयोग दिया. राणा सूर्या,. लक्ष्मीकांत, अंकिता, सुदीप प्रमाणिक ने सक्रिय भूमिका निभाई. संचालन नीतिश और शांभवी ने किया. प्राचार्या डा जूही समर्पिता ने धन्यवाद दिया.