नई दिल्ली: हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने राजधानी नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में साहित्यकार कमलाकांत त्रिपाठी की पुस्तक ‘विनायक दामोदर सावरकर: नायक बनाम प्रतिनायक‘ का विमोचन किया. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि पुस्तक में किया गया वस्तुपरक आकलन सावरकर को नायक की स्वीकार्यता प्रदान करता है. शुक्ल ने कहा कि यह पुस्तक विनायक दामोदर सावरकर के जीवन और विरासत पर प्रकाश डालती है कि किस प्रकार उन्होंने अपने विचारों, साहित्य, और लेखन से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंका था. सावरकर के क्रांतिकारी विचारों से डर कर गोरी हुकूमत ने उन पर न केवल जुल्म ढाया बल्कि उन्हें काला पानी भेजते हुए दो जन्मों के आजीवन कारावास की सजा भी सुनाई थी. लेकिन इन सब से बिना डरे सावरकर ने देश की आजादी के लिए भारतवासियों को एकत्रित करने में निरंतर प्रयास किए.
राज्यपाल शुक्ल ने कहा कि अपनी लेखनी और विचारों से सावरकर ने पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने का काम किया. यह पुस्तक वीर सावरकर की जीवनी, विचार और राष्ट्रीय आंदोलन में उनके योगदान को समर्पित है. किताबघर प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक के लेखक कमलाकांत त्रिपाठी का कहना है कि जब हम सावरकर को तिरस्कार पूर्वक ‘माफीवीर‘ कहकर उनकी खिल्ली उड़ाते हैं तो पहले हमें उन दिनों के सेल्युलर जेल में दस साल के बजाय दस दिन भी रह पाने की अपनी क्षमता पर दृष्टि डालनी चाहिए. दरअसल अंध ‘पक्षधरता‘ हमें अपने देश के नायकों के प्रति काफी हद तक असंवेदनशील बना देती है. त्रिपाठी का कहना है कि सावरकर के चारों ओर घूमते विवादों के बावजूद यह पुस्तक सावरकर के योगदान को यथार्थ रूप से प्रस्तुत करने और राजनीतिक पक्षपात से होने वाली किसी भी गलतफहमी को सुधारने का लक्ष्य रखती है. इस पुस्तक में सावरकर के खिलाफ चलाए गए मुकदमों और कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा के बारे में भी विस्तार से बताया गया है. इस अवसर पर कई लेखक, आलोचक और अन्य गणमान्य लोग भी उपस्थित थे.