अनुज अलंकार

गोपालदास नीरज ने खुद को कभी फिल्मी गीतकार नहीं माना। उनके अपने शब्दों में, मैंने फिल्मों में लिखने के लिए कभी कुछ नहीं किया। जो कुछ मैंने लिखा, वो मैंने किसी फिल्म के लिए नहीं, बल्कि खुद के लिए लिखा। अल्हड़पन में वे ये भी कह जाते थे कि हम इस लायक नहीं थे कि उस दौर के फिल्मी गीतकारों का मुकाबला कर सकें, इसलिए कोशिश नहीं की। जब काम मिलता चला गया, तो काम करते चले गए।
गोपालदास नीरज कलम के उन बादशाहों में से एक रहे, जिनको सिनेमावालों ने अपने साथ जोड़ा। ६० के दशक में गीतकार के तौर पर गोपालदास नीरज धूम मचा रहे थे। रेडियो पर उनकी कविताओं को चाव से सुना जाता था। लखनऊ रेडियो स्टेशन पर उनकी उस दौर की लोकप्रिय हुई कविता गुबार देखते रहे… प्रसारित हुई। जिससे प्रभावित होकर उस दौर के फिल्मकार आर चंद्रा उनसे मिलने पंहुचे। फिल्मों में गीत लिखने के नाम पर नीरज ने दो टूक शब्दों में उनसे कह दिया कि वे फिल्म के नाम पर कुछ नहीं लिखेंगे, उनकी लिखी कविताओं में से अगर वे किसी को फिल्म में इस्तेमाल करना चाहें, तो उनको एतराज नहीं होगा।
नीरज की सिनेमा की दुनिया में ये पहली चहलकदमी थी, लेकिन इसे एक मुकम्मल तस्वीर बनने में ६ साल से ज्यादा का वक्त लगा, जब आर चंद्रा, जो नीरज की कविताओं के मुरीद बन चुके थे और लगातार उनसे मुलाकातें करते रहते थे। १९६६ में आर चंद्रा ने नई उमर की नई फसल नाम से एक फिल्म बनाई, जिसमें चंद्रा ने नीरज की आठ रचनाओं को शामिल किया, जिनमें कारवां गुजर गया के अलावा देखती ही रहो तुम दर्पण आज.. (गायक मुकेश) को रखा गया। फिल्म तो ज्यादा नहीं चली, लेकिन रफी की आवाज में कारवां गुजर गया.. लोकप्रियता के रास्ते पर आगे बढ़ता चला गया।
उस दौर की त्रिमूर्ति में से एक देव आनंद (बाकी दो राज कपूर और दिलीप कुमार) नवकेतन शुरु कर चुके थे और प्रेम प्रतिज्ञा पर काम शुरु हो रहा था, जिसके साथ देव आनंद को निर्देशन के मैदान में आगाज करना था। देव आनंद के लिए एसडी बर्मन का संगीत तय माना जाता था। एसडी ने ही कारवां गुजर गया.. का जिक्र करते हुए देव आनंद से नीरज से लिखवाने को कहा। नीरज ने यहां भी वही कह दिया कि मेरे लिखे गीतों में से अगर आपको कुछ पसंद आए, तो आप चुन सकते हैं। देव आनंद ताड़ गए कि नीरज फिल्मी गीतकार नहीं है, लेकिन कलम के जादूगर हैं। कहते हैं कि नीरज को गीतकार के तौर पर एक हजार रु. की रकम के साथ साइन किया गया और इस शर्त के साथ कि गीत-संगीत की सारी बातें एस डी साहब तय करेंगे। देव आनंद ने इस शर्त को भी कबूल कर लिया। एसडी बर्मन और देव आनंद के साथ प्रेम प्रतिज्ञा की पहली सीटिंग में नीरज को रंगीला.. शब्द पर कुछ लिखने के लिए कहा गया। तकरीबन २० मिनट में अपनी डायरी से नीरज ने एक गाना एसडी के हवाले कर दिया और इस गाने के बोल थे, रंगीला रे… तेरे रंग में… कहते हैं कि ये गाना सुनकर देव आनंद ने नीरज को गले लगा लिया और एसडी बर्मन का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि आप एक नायाब हीरा तलाश करके लाए हो।
नीरज की देव आनंद से ज्यादा एसडी बर्मन के साथ जम जाती थी। इस जोड़ी ने तेरे मेरे सपने और शर्मिली फिल्मों के लिए भी साथ काम किया। नीरज ने एसडी बर्मन को अपनी आत्मा का हिस्सा माना और जिस दिन एसडी की दुनिया से विदाई हुई, तो नीरज ने कहा, मेरे लिए फिल्मी दुनिया का सफर पूरा हो गया।
एसडी बर्मन के अलावा शंकर जयकिशन के साथ नीरज की जमती थी। इस जोड़ी के साथ मेरा नाम जोकर सहित कई फिल्मों में नीरज ने गाने लिखे, जिनमें बस यही अपराध हर बार करता हूं लोकप्रियता के शिखर पर पंहुचा, तो मेरा नाम जोकर का गीत ए भाई जरा देखकर चलो.. भी सुपर हिट रहा।
गोपाल दास नीरज ने खुद को फिल्मी गीतकार नहीं माना, तो इसकी वजह ये रही कि वे फिल्मों की दुनिया में स्टारडम और चापलूसी के माहौल को हजम नहीं कर पाए। उन्होंने हर मौके पर कहा कि टेलेंट की कमी नहीं, लेकिन कद्र भी नहीं होती। वे एक और बात कहते थे, मैं अगर झुककर लिखता, तो पता नहीं क्या क्या लिख जाता, लेकिन जो लिखा, वो दिल से लिखा।
डिजिटल और इंटरनेट क्रांति की इस मौजूदा दुनिया की पीढ़ी के लिए नीरज की लेखनी एक इतिहास और सिनेमा के सुनहरी दौर के साथ जीने वालों के लिए नीरज का जाना शब्दों के ऐसे दीवाने का जाना है, जो सिनेमा की दुनिया को अपने गीतों का खजाना सौप गया।