खगड़ियाः हिंदी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया ने स्थानीय कृष्णा नगर स्थित परिषद कार्यालय क्रांति भवन में हिंदी के चर्चित और प्रतिष्ठित कवि कैलाश झा किंकर की पुण्यतिथि पर विचार गोष्ठी सह कवि सम्मेलन का आयोजन किया. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता नंदेश निर्मल ने की. संचालन पूर्णिया के गीतकार केके चौधरी ने किया. कार्यक्रम की शुरुआत कैलाश झा किंकर की तस्वीर पर माल्यार्पण से हुई. वक्ताओं ने अपने संस्मरण में सबने किंकर और उनके साहित्य को याद किया और उनकी साहित्य सेवा को अलग से रेखांकित किया. वक्ताओं में सुभाष चंद्र जोशी, चंद्रशेखरम, रामकृष्ण आनंद, कपिलदेव महतो, चंद्रिका प्रसाद सिंह विभाकर, रामानंद चौधरी आदि प्रमुख थे. इसके बाद कवि सम्मेलन की शुरुआत हुई. जिसमें केके चौधरी ने भाव विह्वल करने वाली पंक्ति गाई, यार किंकर तो अमर है.
याद रहे कि एक बेहद साधारण किसान परिवार में 12 जनवरी, 1962 को पैदा हुए किंकर ने ‘कौशिकी‘ जैसी राष्ट्रीय स्तर की त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन बिना विज्ञापन के सत्तर अंक तक किया. वे हिन्दी भाषा साहित्य परिषद के संस्थापक और संयोजक थे. परिषद के माध्यम से उन्होंने लेखन, प्रकाशन और आयोजन की परंपरा शुरू की. किंकर की बीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें ‘संदेश‘, ‘दरकती जमीन‘, ‘कोई कोई औरत‘, ‘चलो पाठशाला‘,’ हम नदी की धार में‘, ‘देखकर हैरान हैं सब‘, ‘जिंदगी के रंग हैं कई‘, ‘ईमान बचाए रखते हैं‘, ‘दूरी न रहेगी‘, ‘गजल तो गांव घर तक पसर चुकी‘, ‘छूट जाए वो दामन नहीं हूं‘ के अलावा अंगिका में ‘जत्ते चले चलैने जा‘, ‘ओकरा कोय सनकैने छै‘, ‘जाने जो कि जाने जाता‘, ‘जे होय छै से बढिएं होय छै‘ नामक पुस्तकें शामिल हैं. किंकर ने ‘कौशिकी‘ के अलावा ‘बदलाव‘, ‘स्वाधीनता संदेश‘, ‘कात्यायनी‘, ‘ग़ज़ल नामा‘, ‘खगड़िया जिले के साहित्यकार‘ का संपादन भी किया था.