भोपाल: एशिया के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव ‘उन्मेष‘ का समापन दिवस ‘नारीवाद और साहित्य‘ सत्र के नाम रहा. इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए साहित्य अकादेमी से सम्मानित लेखिका और प्रकाशक नमिता गोखले ने कहा कि सही मायने में नारीवाद का मतलब सभी के लिए समान दृष्टि होना है. उन्होंने प्राचीन काल से महिलाओं द्वारा लिखे साहित्य की चर्चा करते हुए कहा कि लेखन की परंपरा आज भी जारी है. सी मृणालिनी ने नारी साहित्य की उपयोगिता को रेखांकित करते हुए कहा कि इससे नारी स्वतंत्रता के नए द्वार खोले हैं. लीना चंदोरकर ने कहा कि जिस दिन नारी अपने जीवन से जुड़े महत्त्वपूर्ण निर्णय स्वयं ले सकेगी वह तभी आजाद होगी.
इस महत्त्वपूर्ण सत्र में प्रीति शिनॉय ने महिलाओं को दिए जाने वाले कम पैसों के भुगतान पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसके चलते आर्थिक असमानता कम करना मुश्किल हो रहा है. सोनोर झा ने कहा कि इस असमानता को दूर करने की शुरुआत हमें अपने घरों से ही करनी होगी. याद रहे कि ‘उन्मेष‘ के अंतिम दिन 23 कार्यक्रमों में 160 साहित्यकारों ने भाग लिया. इस दिन आदिवासी कवि सम्मिलन, भारत की संस्कृत विरासत, साहित्य के मूल्य, भारत के महाकाव्य, भारत की सौम्य शक्ति, स्वतंत्रता आंदोलन में पुस्तकों की भूमिका और भारतीय भाषाओं में प्रकाशन पर हुआ विचार विमर्श. एसएल भैरप्पा, सुरजीत पातर, विश्वास पाटिल, प्रयाग शुक्ल, के शिवा रेड्डी, नमिता गोखले, संदीप भूतोड़िया, आलोक भल्ला, वसंत निरगुने, रमेश आर्य, मदन मोहन सोरेन और महादेव टोप्पो आदि ने लिया भाग.