भोपाल: “साहित्य में स्त्रीवाद कोई आरोप या बुराई नहीं है क्योंकि इसका विपक्ष पितृसत्तात्मक व्यवस्था है, इसका विलोम पुरुषवाद नहीं समझना चाहिए. इन अर्थों में चित्रा सिंह का काव्य-सृजन स्त्रीवाद के पक्ष में दृढ़ता से खड़ा हुआ है.” यह कहना है साहित्यकार एवं पूर्व आईपीएस अधिकारी अनुराधा शंकर सिंह का. वे आब-ओ-हवा एवं स्पंदन भोपाल के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘कवि और कविता’ के अंतर्गत चित्रा सिंह की पुस्तक ‘धूप के नन्हे पॉंव’ पर एकाग्र कार्यक्रम में अध्यक्षीय वक्तव्य दे रही थीं. शंकर ने अपने पितामह सरीखे बाबा नागार्जुन को याद करते हुए कहा कि उनके समय से ही चित्रा सिंह के परिवार के बीच आत्मीय संबंधों की स्मृतियां हैं. अब जिन्हें बचपन से देखा, वह चित्रा सिंह एक स्थापित कवि के रूप में अपनी पहचान बना रही हैं, हमें और पूरे साहित्य समाज को उन पर गर्व है. अध्यक्षीय वक्तव्य से पहले अपनी टिप्पणी में साहित्यकार मुकेश वर्मा ने कहा कि अंतरंगता के साथ इस तरह की महफिलों के आयोजन आवश्यक हैं क्योंकि ऐसे आयोजनों में लेखक समाज अपनी अभिव्यक्ति कर पाता है. विवेक सावरीकर ‘मृदुल’ ने कहा कि चित्रा सिंह के कविकर्म को लेकर जो बातचीत हुई उससे साफ़ पता चलता है कि वह उर्ध्वगामी सृजन कर रही हैं. ‘बजाय कांटों से दामन बचाने या तार तार होने के अवसादों को तवज्जो देने के वह शुभकामनाओं के फूलों को अपने दामन में समेटती हैं.’ स्पंदन संस्था की प्रमुख एवं वरिष्ठ साहित्यकार उर्मिला शिरीष ने अमेरिका से संदेश भेजा. कवि ब्रज श्रीवास्तव ने कहा कि चित्रा सिंह की कविताएं पढ़ते हुए अमृता प्रीतम तो कभी गुलज़ार के रचनाकर्म जैसा अनुभव होता है और अक्सर वह हमारे आज के जटिल समय और संबंधों को भी बारीक़ी से अपने कवित्व में उकेरती हैं.
हेमंत देवलेकर ने ‘धूप के नन्हे पॉंव’ की कविताओं के प्रमुख तत्वों के रूप में ‘प्रेम’, ‘आत्मविश्वास या साहस’ और ‘उम्मीद’ को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि चित्रा की कविताओं में प्रेम की गरिमा है, स्त्री स्वर है और इन कविताओं की भाषा में आक्रामकता प्रवेश नहीं करती है. इन कविताओं का एक और प्रमुख गुण आत्मविश्वास है. तमाम प्रतीक्षाओं, सूनेपन, एकाकीपन के बावजूद उनमें अदम्य जिजीविषा, साहस, फक्कड़पन और आनंद का अनुभव होता है. देवलेकर ने कविताओं की भाषा को जीवन्त और मार्मिक बताते हुए यह भी उल्लेख विशेष रूप से किया कि ये कविताएं अपने स्वरूप में शब्दों के अपव्यय के विरोधी हैं और सूत्र या सूक्ति के रूप में परिपक्वता दिखाती हैं न कि अधिक कहने के लालच में अनावश्यक शब्दों को ठूंसती हैं. सुमन सिंह ने कहा कि ये कविताएं भारी भरकम शब्दों से मुक्त और हृदय की भाषा की समर्थक हैं. इनमें प्रतीकात्मकता का सूक्ष्म खेल है तो आकार में छोटी लेकिन प्रभाव में ये कविताएं गहरी हैं. सुमन एवं रेखा पांडेय के प्रश्नों व जिज्ञासाओं पर चित्रा सिंह ने अपनी कविताओं की ही भांति संक्षेप में कुछ सार्थक टिप्पणी करते हुए श्रोताओं को अपने चिंतन एवं विचारणा से अभिभूत किया. चित्रा सिंह ने कहा कि मुझे संवेदनशीलता मॉं से मिली. प्रेम भी. इस अवस्था में भी मॉं की नज़रों में पिता की छवि वही दशकों पुराने मेरे उन पिता की है, जो उनके प्रेमी रहे. मॉं से प्रगतिशीलता और मुखरता के गुण भी मुझे मिले. ऐसे अनेक कारणों से मेरी कविताओं के मन के केंद्र में उनका प्रमुख स्थान है.’ अपनी कुछ कविताओं के संदर्भ में चित्रा सिंह ने अपनी नानी को भी आधुनिक सोच वाली महिला बताते हुए कहा कि उनकी प्रगतिशील समझ उनके जीवन के मूल में ही रची बसी रही. अपने पिता लेखक, कवि, आलोचक विजय बहादुर सिंह के बारे में बात करते हुए चित्रा ने कहा कि जितना प्रभाव आनुवांशिक रूप से पिता का आता है, उतना ही रहा क्योंकि होश संभालने की उम्र में पिता के सान्निध्य से वह अपेक्षित रूप से वंचित रहीं. आभार मनस्वी अपर्णा ने किया. संचालन भवेश दिलशाद ने किया. आयोजन में इक़बाल मसूद, डा किशन तिवारी, शमीम ज़ेहरा, मौसमी परिहार, पीयूष बबेले, जयजीत अकलेचा सहित अनेक प्रतिष्ठित साहित्यकार, पत्रकार, कलाकार मौजूद रहे.