खरगोन: कबीर जयंती बीत गई है, पर कवियों के लिए ऐसा नहीं है. मप्र लेखक संघ की खरगोन इकाई ने विश्व पर्यावरण दिवस और कबीर के लिए एक कविता-गोष्ठी का आयोजन किया. गोष्ठी में निमाड़ी के व्यंग्यकार ब्रजेश बड़ोले ने व्यंग्य रचना ‘आड़ी तिरछी वाट कबीरा, जिनगी घणी कचाट कबीरा, पंच अवं परमेसर नी रह्या, पी न करज कुर्राट कबीरा’ सुनाया. गजलकार महेश जोशी ने ‘आनंदित होता हूं, गर्वित होता हूं, मैं से हम में परिवर्तित होता हूं’ सुनाई, तो डॉ एमएस बार्चे ने ‘राम मेरी करबद्ध प्रार्थना’ कविता सुनाई. इस गोष्ठी का आयोजन संघ के सचिव मोहन परमार के आवास पर आयोजित हुई. इस दौरान अतिथि के रूप में साहित्यकार राकेश राणा उपस्थित रहे. उन्होंने कहा कि “शब्द अमर है, शब्द ब्रह्म है, शब्द शाश्वत है, शब्द की महिमा अनंत है’. सरस्वती वंदना रजनी उपाध्याय ने प्रस्तुत किया.

संघ के संयोजक डॉ अखिलेश बार्चे ने व्यंग्य ‘माय मोहल्ला चेनल’ चित-परिचित अंदाज में पढ़ तारीफ बटोरी. डॉ लवेश राठोड़ ने ‘दिल पे हर बात ली नहीं जाती, जिंदगी घुट के जी नहीं जाती’ गजल प्रस्तुत की. जगदीशचंद्र पंड्या ने ‘मंदिर मस्ज़िद के बीच में नफरत की दीवार, किस किस को समझाए, अब कबीरा है लाचार’ कविता पढ़ी. प्रचार प्रसार प्रभारी दिलीप पालीवाल ने ‘ऐ दर्द कुछ तो डिस्काउंट दे, मैं तो तेरा रोज का ग्राहक हूं’ पढ़ी, तो मोहन परमार ने निमाड़ी रचना ‘काळी काळी बादळी, करऽ घटा घनघोर वो, सरर सरर चलs वाळ सुहावणी, हालs माथा की बोर वो’ सुनाया. गोष्ठी में प्रीति महाजन, निमिषा सराफ, मोनिका नाईक, पूर्णिमा बार्चे सहित कैलाश कुमरावत, गोपीकिशन शर्मा, सच्चिदानंद स्वरूप गुप्ता, जगदीश जोशी, मुकेश बार्चे व राजनाथ सोहनी दादा ने भी रचनाएं प्रस्तुत की. इस दौरान दुर्लभ औषधीय पौधों की जानकारी भी दी गई.