कोलकाता: “आज डिजिटल आकर्षणों के बीच साहित्य के मूल्य को बचाए रखने की आवश्यकता है“, यह बात पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका मुक्तांचल के दशक-पूर्ति के उपलक्ष्य में आयोजित एक संगोष्ठी में डा प्रकाश अग्रवाल ने कही. सोशल मीडिया के युग में साहित्य के सामने आने वाली समकालीन चुनौतियों को रेखांकित करते हुए उन्होंने फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफार्मों पर साहित्यिक कृतियों के तुष्टिकरण पर खेद व्यक्त किया और छात्रों से साहित्यिक लेखन के मानकों को बनाए रखने का आग्रह किया. उधर डा विजया सिंह ने शिक्षा में नवाचार और अनुकूलन के महत्त्व पर बल दिया. सीखने के अनुभवों को बढ़ाने के लिए आधुनिक उपकरणों और माध्यमों के एकीकरण की वकालत की. उन्होंने शिक्षकों से पारंपरिक सीमाओं को पार करने और फेसबुक और आनलाइन प्लेटफार्म के माध्यम से शिक्षा के नए दृष्टिकोणों को अपनाने का आग्रह किया. डा विनय मिश्र ने सोशल मीडिया और शैक्षणिक नेटवर्क के महत्व को उजागर किया. डा स्नेहा सिंह ने शिक्षा के क्षेत्र में नवीनता के आग्रह और पुरानी परिपाटी के परित्याग पर बल दिया.
संगोष्ठी में रितेश पांडेय ने आज के विद्यार्थियों के तकनीकी क्षमताओं की सराहना की और साहित्यिक अभिव्यक्ति में नवाचार को प्रोत्साहित करने पर बल दिया. डा पंकज साहा ने साहित्य और शोध को बढ़ावा देने के लिए मुक्तांचल के प्रयासों की सराहना की. डा सत्या उपाध्याय ने राज्य के विभिन्न कालेजों के पुस्तकालयों में साहित्यिक पत्रिका रखवाने और कविता कार्यशाला आयोजित करने का प्रस्ताव रखा. संगोष्ठी की अध्यक्षता डा ऋषिकेश राय ने की. उन्होंने रोजगारोन्मुखी साहित्य के प्रकाशन पर बल दिया और भारतीय भाषाओं के अनुवाद साहित्य पर चर्चा की. संगोष्ठी में पश्चिम बंगाल के कई वरिष्ठ साहित्यकारों ने अपनी उपस्थिति दर्ज की. कार्यक्रम के आरंभ में संपादक डा मीरा सिन्हा ने पत्रिका की यात्रा पर प्रकाश डाला. शुभ्रा उपाध्याय, प्रिया श्रीवास्तव, सरिता खोवाला, आकाश गुप्ता, प्रिंस मिश्रा आदि ने भी अपने विचार रखे. अक्षिता साव ने स्वरचित कविता-पाठ किया. बलराम साव, पद्माकर व्यास, नगीना लाल दास, युवराज सिंह आदि ने सक्रिय भूमिका निभाई. संचालन विनोद यादव ने और धन्यवाद ज्ञापन विवेक लाल ने किया.