नई दिल्ली: “साहित्य में पर्यावरण का वैज्ञानिक अध्ययन- वाकई हिंदी साहित्य का अछूता प्रयोग है. इस विषय पर लिखी मीरा गौतम की पुस्तक में वैज्ञानिकता का आतंक नहीं है. यह आवश्यक है कि ऐसे शोध और हों. पर्यावरण संरक्षण में संविधान और मीडिया की सतर्कता बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. हमारा साहित्य प्रेम और प्रकृति सौन्दर्य से भरा पड़ा है.” यह बात प्रख्यात साहित्यकार एवं मध्य प्रदेश के सेवानिवृत्त अपर मुख्य सचिव मनोज श्रीवास्तव ने कही. वे ‘साझा संसार‘ नीदरलैंड की पहल पर ‘साहित्य में पर्यावरण का वैज्ञानिक अध्ययन‘ शोध ग्रंथ पर आयोजित विमर्श के दौरान बोल रहे थे. इस आनलाइन आयोजन में इग्नू के अंतर्राष्ट्रीय विभाग के निदेशककविआलोचक जितेन्द्र श्रीवास्तवकनाडा से डा शैलजा सक्सेनायूएई से डा आरती लोकेश और स्पेन से पूजा अनिल ने बतौर विशिष्ट वक्ता शिरकत की. संचालन नीदरलैंड्स से शगुन शर्मा ने और तकनीकी संचालन राजेंद्र शर्मा ने किया. पुस्तक में उल्लिखित पुष्टिमार्ग की चर्चा करते हुए मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि मीरा गौतम की आधुनिकता इसमें है कि वे पुष्टि से पोषण काधरती से पोषण का अर्थ समझाती हैं. वह सही निष्कर्ष निकालती हैं. भारतीय संस्कृति में श्रीकृष्ण पर्यावरण के सबसे बड़े संरक्षक कहे जा सकते हैं. श्रीवास्तव के मतानुसार आधुनिक तकनीकी को पर्यावरण से माफी मांगनी चाहिए.

कवि जितेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि पर्यावरण विमर्शजीवन विमर्श है. पर्यावरण जीवन का अभिन्न हिस्सा है. किसान चेतना की समझ से पर्यावरण की चिंता जागेगी. यह पुस्तक शोधार्थियों के लिए सैकड़ों दरवाजे खोलती है. डा शैलजा सक्सेना ने कहा कि साहित्य ने मनुष्य को अधिक संवेदना दी है. मनुष्य प्रकृति के साथ सामंजस्य पूर्वक रहे अन्यथा समस्याएं बनी रहेंगी. पुस्तक प्रस्थान बिंदु है. मीरा गौतम ने मशाल जलाई है. पूजा अनिल ने कहा कि यह पुस्तक पुरातन से नवीनतम का समावेश है. साहित्य ने मानव जीवन को सदा समृद्ध ही किया है. डा आरती लोकेश ने कहा कि मीरा गौतम ने भगवद्गीता के श्लोकों में पर्यावरण को टटोला है. वे अभीष्ट से अनिष्ट को व्याख्यायित करती हैं. पुस्तक इस मिथ को तोड़ रही है कि प्रकृति ही पर्यावरण है. संयोजक रामा तक्षक ने कहा कि पर्यावरण की महत्ता एक छोटी सी वैदिक बात से समझ आती है कि खुरपी से हटाई गई मिट्टी को पुनः वापस वहीं डालनापर्यावरण के संरक्षणपर्यावरण के प्रति जागरूकता का सबसे अच्छा उदाहरण है. उन्होंने कहा कि अनपढ़ और पढ़े लिखे सब पर्यावरण की अनदेखी करते हैं. धन नया धर्म बन गया है. धन के लिए मानव अपने आत्मीय संबंधआर्थिक विकास के पीछे अपना जीवन दांव पर लगा देता है. वह धन के आगे नतमस्तक रहता है. ऐसे में हम अपना सब कुछपूरी विरासत बलिदान करने के लिए राजी हैं.