शिमलाः शिमला राष्ट्रीय पुस्तक मेला 2023 के दौरान साहित्यकार और सेतु साहित्यिक पत्रिका के संपादक डॉ देवेन्द्र गुप्ता को ओकार्ड साहित्य सम्मान से नवाजा गया. सम्मान समारोह की मुख्य अतिथि हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष और सांसद प्रतिभा सिंह थीं. कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार नरेश कौशल ने की. सांसद सिंह ने ओकार्ड इंडिया द्वारा पुस्तक मेले के आयोजन और हिमाचल के लेखकों को सम्मानित करने की पहल की सराहना की. अध्यक्षता कर रहे कौशल ने बधाई देते हुए कहा कि डॉक्टर गुप्ता ने पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने के साथ-साथ लेखकों के सम्मान को भी सर्वोपरि रखा है. उन्होंने कहा कि ऐसे वक्त में जब तन झुलसाती गर्मी से पूरा देश तप रहा हो, तो हर भारतीय के दिल के कोने में एक इच्छा होती है कि पहाड़ों की रानी शिमला में कुछ वक्त गुजारने का मौका मिले. आये दिन बड़ी संख्या में पर्यटकों का देवभूमि आगमन इस बात का प्रमाण भी है. उसी पहाड़ों की रानी शिमला में यदि आगंतुक को बोनस में साहित्य की शीतल फुहार मिल जाये, तो निश्चित रूप से यह मणिकांचन संयोग ही कहा जायेगा. यह स्वयंसिद्ध बात है कि पहाड़ों की शीतल बयार जहां तन को शीतलता प्रदान करती है, वहीं साहित्य की फुहार आत्मा को शीतलता प्रदान करती है. इस तरह यहां आने वाले पुस्तक प्रेमी दोहरा लाभ हासिल कर रहे हैं.
कौशल ने कहा कि ऐसे वक्त में जब तकनीक पर निर्भरता व सोशल मीडिया का कोलाहल है, तो साहित्य हमारे तन-मन के लिये शीतल बयार की तरह ही है. मेरा पक्का विश्वास है कि ओकार्ड इंडिया और एसआर हरनोट के साझा प्रयासों से आयोजित साहित्यिक कुंभ से साहित्य का अमृत जरूर छलकेगा. एसआर हरनोट साहित्य की दुनिया में एक जाना माना नाम है. चार दशक से अधिक समय से वे साहित्य सृजन की दुनिया में प्रतिष्ठित हैं. उनकी मर्मस्पर्शी कहानियों का एक बड़ा पाठक वर्ग है. खासकर वंचित मूक समाज को उन्होंने आवाज दी है. हिमालय साहित्य मंच के साहित्यिक आयोजन पाठक वर्ग के लिए वरदान जैसे हैं. समारोह में प्रमुख वक्ता प्रो मीनाक्षी एफ पॉल और डॉ देवकन्या ठाकुर ने डॉ देवेन्द्र गुप्ता के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से बात की. सम्मान स्वीकार वक्तव्य में डॉ देवेन्द्र गुप्ता ने कहा कि सत्ता की एक संस्कृति होती है, तो संस्कृति, साहित्य की भी अपनी एक सत्ता होती है. राजनीति बिना सामाजिक सरोकारों के नहीं हो सकती. साहित्यकार के भी वही सामाजिक सरोकार होते हैं. देखना यह है कि आज साहित्यकार कितनी निर्भीकता के साथ अपने लेखन के माध्यम से समाज में हाशिये पर खड़े लोगों के जीवन में बदलाव ला पाते हैं.