नई दिल्ली: “अमिता दुबे अत्यंत संवेदनशील कवयित्री और कथाकार हैं. बहुत कम समय में उन्होंने कथाउपन्यासकवितासमालोचना और बाल साहित्य के क्षेत्र में सराहनीय लेखन कर हिंदी साहित्य जगत में एक उल्लेखनीय स्थान अर्जित किया है. मैं उनकी रचनाएं पढ़ता रहा हूं.” देश के वयोवृद्ध साहित्यकार प्रोफेसर रामदरश मिश्र ने यह बात डा अमिता दुबे को सर्वभाषा साहित्य सृजन सम्मान 2023 से सम्मानित करते हुए कही. सर्व भाषा ट्रस्ट की ओर से डा अमिता दुबे को यह सम्मान उन्होंने अपने आवास पर आयोजित एक सादे समारोह में प्रदान किया. इस अवसर पर कवि और समालोचक डा ओम निश्चल ने अमिता दुबे के लेखन में मानवीय मूल्यों और सतत रचनाशीलता के लिए उनके संकल्प और  प्रतिश्रुति की सराहना की. समारोह में निश्चल के अलावा लेखिका एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के खालसा कॉलेज की हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो स्मिता मिश्रसर्वभाषा ट्रस्ट के संयोजक केशव मोहन पांडेय सहित कई लेखकसंस्कृतिकर्मी और छात्र उपस्थित थे. अमिता दुबे इस से पहले डा सरोजिनी कुलश्रेष्ठ कथा कीर्ति सम्मानराष्ट्र धर्म गुरु सम्मानगजानन माधव मुक्तिबोध सम्माननीरज सम्मानपृथ्वी नाथ भान साहित्य सम्मान सहित कई अन्य सम्मानों और पुरस्कारों से विभूषित हो चुकी हैं.

हिंदी साहित्य जगत में  साढ़े तीन दशकों से रचनारत अमिता दुबे का जन्म 15 मार्च, 1967 को लखनऊ में हुआ. वे साहित्य की विविध विधाओं में सक्रिय हैं. दुबे ने कविता से आरंभ कर उत्तरोत्तर कहानीउपन्यास और बाल साहित्य में अपनी पैठ स्थापित की तथा आलोचनासमीक्षा के क्षेत्र में भी नए मानक गढ़े. मुक्तिबोध के काव्यआलोचना और कथा-संसार पर शोध के लिए पहचानी जाने वाली दुबे ने साहित्य के अनेक प्रतिष्ठित एवं भूले-बिसरे सृजनकर्मियों पर अपनी लेखनी चलाई. उन्होंने ऐसे रचनाकारों को भी चिन्हित और विवेचित किया है जो साहित्येतिहास की मुख्य धारा से छिटक से रहे थे. कविता की गहन संवेदना को प्रमाणित करने के लिए उनकी कई काव्य कृतियां हैंतो आलोचना विधा में भी दशाधिक कृतियां प्रकाशित और चर्चित हो चुकी हैं. उन्होंने साहित्य के वरेण्य हस्ताक्षरों निरालामहादेवीहरिऔधमुक्तिबोधरामविलास शर्माअमृतलाल नागर और अमरकांत इत्यादि पर अपने विवेचन से यह सिद्ध किया है कि साहित्य के समग्र परिदृश्य पर उनकी व्यापक दृष्टि रही है. संप्रति वे उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थानलखनऊ में प्रधान संपादक के पद पर कार्यरत हैं. अमिता दुबे के रचना संसार पर विभिन्न विश्वविद्यालय में अनेक शोध कार्य संपन्न हो चुके हैं तथा उनकी कहानियां और कविताएं ओड़ियाबांग्लागुजरातीमराठी एवं पंजाबी आदि भाषाओं में अनूदित हो चुकी हैं.