इंदौरः साहित्य सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती के उपलक्ष्य में उनके साहित्य, आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद, उद्देश्य आदि बिंदुओं को वामा साहित्य मंच ने अपनी मासिक गोष्ठी की चर्चा का केंद्र बनाया और मुंशी प्रेमचंद और उनके साहित्य को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दी. मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार प्रभु त्रिवेदी ने अपने उद्बोधन में उर्दू हिंदी कि काव्य विधाओं पर भी विस्तार से अपनी बात रखी और कहा कि भारतीय साहित्य विधा में दोहा एक ऐसी विधा है, जो गजल के शेर से पंजा लड़ा सकती है. यथार्थ की कड़वी सच्चाई से पीड़ित लेखक अपने समय का चित्रण कर अपने लेखन से पाठक को आदर्शोन्मुखी साहित्य-संसार के बहाने उसके खुद के संसार ले जाता है, तो वह साहित्य अमर हो जाता है. मुंशी प्रेमचंद ने ऐसे ही अमर साहित्य की रचना अपनी कहानियों और उपन्यासों के माध्यम से की.
वामा के मुख्य संयोजक मधु टाक का. गोष्ठी में स्वागत उद्बोधन वामा अध्यक्ष इन्दु पाराशर ने दिया. सरस्वती वंदना सुषमा मोघे ने प्रस्तुत की. अतिथियों का स्वागत संस्थापक अध्यक्ष पद्मा राजेंद्र और सचिव शोभा प्रजापत ने किया. प्रेमचंद का रचनाकर्म और आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद के बीच उनका साहित्य-संसार पर भावना दामले, अनुपमा गुप्ता, आरती दुबे, अवंती श्रीवास्तव, माधुरी निगम, अनिता जोशी, निधि जैन, आशा मानधन्या, हंसा मेहता,आशा मुंशी, शांता पारेख, करुणा प्रजापति, प्रतिभा जैन, डॉ ज्योति सिंह, वाणी जोशी ने अपनी प्रस्तुतियां दीं. अतिथियों को स्मृति चिह्न आशीष कौर होरा, ज्योति जैन ने प्रदान किए. आभार प्रीति रांका ने किया. संचालन निरुपमा त्रिवेदी ने किया. इस आयोजन में वरिष्ठ साहित्यकार शारदा मंडलोई, प्रेम कुमारी नाहटा, नीलम तोलानी, अंजना श्रीवास्तव, पुष्पा दसौंधी आदि भी उपस्थित थे.