बांसवाड़ाः ‘आधुनिक चिंतनः पत्रकारिता एवं साहित्य‘ संगोष्ठी साहित्य और पत्रकारिता के अंतर्संबंधों पर ज्वलंत परिचर्चा-सत्र का आयोजन राजस्थान मीडिया एक्शन फोरम ने स्थानीय संभाग मुख्यालय पर किया. इस साहित्यिक परिचर्चा में वयोवृद्ध चिंतक भूपेंद्र उपाध्याय ‘तनिक‘, वरिष्ठ साहित्यकार भरत चंद्र शर्मा, प्रयोगधर्मी साहित्यकार हरीश आचार्य, श्री हरिदेव जोशी राजकीय कन्या महाविद्यालय की प्राचार्य डा सरला पण्ड्या एवं वरिष्ठ पत्रकार दीपक श्रीमाल ने अपनी बात रखी. ‘हर युग में कालजयी रहा है यह अन्तर्सम्बन्ध‘ कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पत्रकार और साहित्यकार अनिल सक्सेना ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण है. सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक पक्षों का यथार्थ चित्रण ही सच्चा साहित्य है. उन्होंने कहा कि यही सत्य है कि साहित्य अतीत से प्रेरणा लेता है, वर्तमान को चित्रित करता है और भविष्य का सशक्त मार्गदर्शन करता है. ‘मिशन भावना से दायित्व निर्वाह जरूरी‘ पर बल देते हुए सभी ने समसामयिक संदर्भ में पत्रकारिता और साहित्य के सरोकार पर सारगर्भित उद्बोधन दिया.
‘लोक जागृति संचार में अहम् योगदान‘ पर वक्ताओं ने कहा कि पत्रकारिता और साहित्य एक सिक्के के दो पहलू हैं. साहित्य के द्वारा सदियों से समाज में जन जागरण का कार्य किया जा रहा है. लेखकों और कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में नई क्रांति को दिशा दी है. साथ ही पत्रकारिता के माध्यम से भी समाज के विभिन्न पहलुओं पर व्यापक जागृति का संचार हुआ है. ‘त्यागनी होगी आधुनिकीकरण और व्यावसायिक मानसिकता‘ विषय पर वक्ताओं का मत था कि आज के युग में साहित्यकार पुरस्कार, सम्मान और अभिनन्दन पाने के लिए अपनी पुस्तक एवं लेखनी कर रहा है, जिससे वह अपने लक्ष्य से भटक रहा है अथवा निर्देशित सृजन को अपना चुका है. ज्यों-ज्यों साहित्य व पत्रकारिता का आधुनिकीकरण और व्यवसायीकरण हो रहा है, उसके मूल्यों में निरन्तर गिरावट आ रही है.‘हमारे सांस्कृतिक व सामाजिक मूल्यों को नहीं भूलना चाहिए‘ परिचर्चा में सार्वजनीन तौर पर यह निष्कर्ष सामने आया कि आज के इस डिजिटल युग में युवा पीढ़ी पुस्तकों व साहित्य से दूर होती जा रही है और पुस्तकों को पढ़ने के प्रति रुझान समाप्त हो रहा है, जिससे युवा भटक रहा है और वह अपने परंपरागत मौलिक संस्कार, सामाजिक व नैतिक मूल्यों को भूलता जा रहा है. हालात ये हैं कि जैसा हम अपने परिवार व समाज में देखते हैं वही नई पीढ़ी अपने आचरण में ढाल रही है. जैसा हम करेंगे वैसा ही आने वाला भविष्य बनेगा. इसीलिए हमें हमारे सांस्कृतिक व सामाजिक मूल्यों को नहीं भूलना चाहिए. ‘जागृति संचार में प्रभावी है साहित्य और पत्रकारिता का योग‘ पर चर्चा में कहा गया कि साहित्य के बिना पत्रकारिता अधूरी है. एक अच्छा साहित्य पत्रकारिता के साथ जुड़कर ही उसमें निखार ला पाने में समर्थ होता है और पत्रकारिता के उद्देश्यों को पूरा करते हुए समाज में जागृति का संचार कर सकता है.
कार्यक्रम की शुरूआत अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन और सरस्वती वंदना से हुई. परिचर्चा का संचालन फोरम के संस्थापक अनिल सक्सेना ने किया. ‘इन्होंने रखे प्रेरणादायी विचार‘ पर डा आशा मेहता, डा महिपाल सिंह राव, डा राकेश शास्त्री, डा सर्वजीत दुबे, कृष्णा भावसार, मणिलाल जोशी, वीरेंद्र सिंह राव, प्रकाश पण्ड्या, भूपालसिंह राठौड़, जितेन्द्र सिंह राजावत, सुभाष नागर, ओम पालीवाल, शालिनी मिश्रा, महेश पंचाल ‘माही‘, संदेश जैन, अशोक मदहोश, कमलेश कमल, भारत दोसी, डा दीपिका राव, जयगिरिराजसिंह चैहान, हेमंत पाठक ‘राही‘, मोहनदास वैष्णव, प्रतिभा जैन, शंकर यादव, भागवत कुन्दन, संदेश जैन सहित पत्रकारों, साहित्यकारों, कलाकारों और प्रबुद्धजनों आदि ने अपने विचार व्यक्त किए. ‘उत्साही सहभागिता का दिग्दर्शन‘ पर भारती भावसार, सईद मंजर, जहीर आतिश, सईद रोशन, घनश्याम सिंह भाटी, तारेश दवे, राजेंद्र संतवाणी, प्रेरणा उपाध्याय, हीना भट्ट, धर्मेन्द्र उपाध्याय, हिमेश उपाध्याय, उत्तम मेहता ‘उत्तम‘, आशीष अमोल गणावा, यामिनी जोशी, नरहरि आर. भट्ट, नन्दकिशोर वैष्णव, गिरीश पालीवाल, अमित चेचानी, संदीप माली ने उपस्थिति दर्ज कराई. शुभारंभ सत्र का संचालन शालिनी मिश्रा ने किया. ‘पौधों का दिया उपहार‘ अवसर के माध्यम से राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल बांसवाड़ा ने सभी अतिथियों को पौधों का उपहार प्रदान किया और उन्हें पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन का संकल्प दिलाया.