मुंबई: ‘हरीश पाठक की कहानियां रोटी के लिए छोटी-छोटी स्थितियों को बड़े कैनवास पर उजागर करती हैं. वे कम शब्दों में बड़ी बात कहते हैं यही उनकी कहानियों की ताकत है,’ यह कहना है वरिष्ठ कथाकार मनहर चौहान का. वे आठवें दशक के महत्त्वपूर्ण कथाकार ‘हरीश पाठक की कहानियों में रोटी का संघर्ष’ विषय पर नीलांबरी फाउंडेशन द्वारा आयोजित विमर्श के दौरान बतौर अध्यक्ष अपने विचार व्यक्त कर रहे थे. इस अवसर पर वरिष्ठ कथाकार, पत्रकार सुदर्शना द्विवेदी ने कहा, ‘साम्यवादी तेवरों से वयस्क हुए और समाजवादी नजरिये से आगे बढ़े हरीश पाठक की कहानियों में साधनहीन समाज में आज भी व्याप्त रोटी का संघर्ष यथावत जारी है.’ उनका वक्तव्य आलेख अभिनेत्री, लेखिका रेखा बब्बल ने पढ़ा. डॉ हुबनाथ पांडेय का कहना था कि ‘महाभारत और जातक कथाओं में भी रोटी का संघर्ष नहीं मिलता. हरीश पाठक कल्पना से नहीं जीवन से कहानियां उठाते हैं. वे जिंदगी के कथाकार हैं.’ डॉ रीता दास राम ने कहा, ‘रोटी के संघर्ष से कोई नहीं बचता. इन कहानियों में रोटी व्यक्ति के टूटने की मजबूरी तो है पर वह तोड़ती नहीं है.’

डॉ रवींद्र कात्यायन ने कहा, ‘यह कहानियां हमारी संवेदना को झकझोरती हैं.’ रेखा बब्बल ने कहा, ‘मुंबई सपनों का नहीं हादसों का शहर है.’ सुभाष काबरा ने कहा, ‘भोगे हुए यथार्थ को लिखना बहुत मुश्किल है.’ अरविंद राही ने कहा, ‘हरीश पाठक भाषा के जादूगर हैं.’ जबकि कमलेश पाठक का कहना था,’सच के पैरोकार हैं हरीश पाठक.’ इतने तरह के वक्तव्यों के बीच अपनी बात रखते हुए कथाकार हरीश पाठक ने कहा, ‘कमलेश्वर और डॉ धर्मवीर भारती यदि मेरी जिंदगी में नहीं आते तो आज यहां मैं आपके सामने शायद ही बैठ पाता. मेरे जीवन में मोहब्बत नहीं, रोटी का ही संघर्ष रहा. मैंने मोहब्बत पर कोई कहानी नहीं लिखी. रोटी का, आम जन का संघर्ष ही मेरी कहानियों का मूलाधार है. कार्यक्रम की शुरुआत में संस्था की अध्यक्ष डॉ नीलिमा पांडेय ने विचार रखे. कुसुम तिवारी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की. आभार अरविंद राही ने और संचालन डॉ रमेश यादव ने किया. इस अवसर पर मितुल प्रदीप, महेंद्र मोदी, जया आनन्द, नीता बाजपेयी, संगीता बाजपेयी, मालती जोशी, शशि सोहन शर्मा, खुशबू तिवारी, शकुंतला पंडित, राजेश विक्रांत, सरताज मेहंदी, अर्चना जोहरी, डॉ प्रमोद पल्लवित, आनन्द शर्मा, श्रीधर मिश्र, सुमित कुमार, डॉ निशा सिंह सहित कला, साहित्य, संस्कृति से जुड़े कई लोग उपस्थित थे.