नई दिल्ली: नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले के दौरान एक तरफ जहां हर आयु के पाठक अपनी मनपसंद पुस्तकों को खरीदकर घर ले जाते दिखे, वहीं लेखक मंच, बाल मंडप, थीम मंडप और अंतर्राष्ट्रीय गतिविधि मंच पूरे दिन लेखकों, साहित्यकारों, कलाकारों, पत्रकारों की उपस्थिति का गवाह बना रहा. अंतर्राष्ट्रीय गतिविध कार्नर में किंग अब्दुलअजीज फाउंडेशन ने मेजेनाइन हॉल में ‘फोरम आफ अरेबिक हेरिटेज इन इंडिया प्रोग्राम‘ का आयोजन किया. तीन विविध सत्रों ‘भारतीय विद्वानों का अरबी संस्कृति में योगदान‘, ‘अरबी संस्कृति-सेवा में भारतीय संस्थानों का योगदान‘ और ‘अरबी संस्कृति सेवा में सऊदी अरब के संस्थानों का योगदान‘ के दौरान व्यापक वैश्विक संदर्भ में भारत की ज्ञान प्रणालियों और संस्थानों के दूरगामी प्रभाव पर प्रकाश डाला गया. इन सत्रों में प्रोफेसर मो अयूब अल-नदुई, प्रोफेसर नसीम अख्तर, प्रोफेसर नईम अल-हसन अतहरी, हबीब अल्लाह खान, प्रोफेसर इस्फाक अहमद, डा अंसार अल-दीन ताज अल-दीन, डा उबैद अल-रहमान तैय्यब आदि अनेक विद्वानों के अपने विचार प्रस्तुत किए.
चर्चा सत्र और पुस्तक विमोचन भी साथ-साथ चलते रहे. अरबी से जुड़े सत्र में जहां भारतीय छात्रों को अरबी भाषा अध्ययन के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया और केरल विश्वविद्यालय जैसे भारतीय संस्थानों की सराहना की गई, वहीं विमोचन सत्र में अद्विक पब्लिकेशन से आई स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग, शिक्षा मंत्रालय के निदेशक और वरिष्ठ साहित्यकार जय प्रकाश पांडे के बाल कहानी संग्रह नीली राजकुमारी और वरिष्ठ साहित्यकार और व्यंग्यकार सुभाष चंदर की हास्य कहानियों की पुस्तक ‘दाने अनार की‘ का विमोचन किया गया. कार्यक्रम में साहित्यकार रामनाथ त्रिपाठी ने कहा कि पढ़ने की परंपरा से युवा दूर होते जा रहे हैं. पहले दादा-दादी, नाना-नानी कहानियां सुनाते थे, बच्चे के लिए वे ही प्रथम रचनाकार होते थे, लेकिन अब धीरे-धीरे संयुक्त परिवार विखंडित हो रहे हैं, ऐसे में साहित्यकार उस परंपरा को बरकरार रखने के कार्यवाहक हैं.