नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी ने साहित्य मंच कार्यक्रम के तहत ‘व्यक्तिगत इतिहास और सामाजिक परिवर्तन‘ विषय पर एक परिचर्चा आयोजित की. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता मालाश्री लाल ने की और इसमें अचला बंसल, लक्ष्मी पुरी और निशात जैदी ने अपने-अपने वक्तव्य प्रस्तुत किए. कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने स्वागत वक्तव्य दिया. उन्होंने कहा कि हम सब इतिहास का हिस्सा हैं और इस कारण सामाजिक बदलाव के भी कारक हैं. राव का कहना था कि केवल नारों से ही नहीं बल्कि ज्ञान के आधार पर भी सामाजिक परिवर्तन की आधारभूमि तैयार की जा सकती है. अचला बंसल ने उत्तर प्रदेश के एक छोटे शहर बुलंदशहर पर लिखे अपने उपन्यास के आधार पर कहा कि कई बार सीधे तौर पर यह कह पाना मुश्किल होता है कि हमारे लिखे गए का सामाजिक बदलाव में क्या हिस्सा है. लेकिन लेखन में प्रयुक्त बहुत सी तात्कालिक समस्याएं आगे चलकर सामाजिक बदलाव की पृष्ठभूमि तैयार करती है. लक्ष्मी पुरी ने अपने माता-पिता पर लिखे उपन्यास के सहारे बताया कि इसकी पृष्ठभूमि बीसवीं सदी की शुरुआत है, जब सारा देश स्वतंत्रता के लिए छटपटा रहा था. उस समय, सभी स्वतंत्रता के लिए जरूरी परिवर्तनों को अपने आस-पास महसूस कर रहे थे.
पुरी ने कहा कि उनके उपन्यास से स्त्री शिक्षा और जातिवाद के अनेक पहलू सामने आते हैं. इस तरह का लिखा गया इतिहास कई बार पाठ्य पुस्तकों का हिस्सा नहीं होता है लेकिन कहीं न कहीं सामाजिक इतिहास तो होता ही है. निशात जैदी ने दक्षिण भारत की एक महिला की लेखनी के अनुवाद के बाद महसूस किए गए अपने अनुभव सभी के साथ साझा करते हुए बताया कि इस पुस्तक में एक महिला के जीवन में आए सामाजिक बदलावों को देखा जा सकता है. अपने बच्चों के रहते पढ़ाई करने और घरेलू दिनचर्या के बावजूद बदलाव यहां भी देखा जा सकता है. अध्यक्षीय वक्तव्य में मालाश्री लाल ने कहा कि आज के समय में आत्मकथा, जीवनी एवं अन्य साहित्यिक विधाओं में सामाजिक घटनाओं की सच्चाई ज्यादा स्पष्ट तौर पर देखी जा रही है जो सामाजिक बदलाव के अध्ययन के लिए अच्छा संकेत है. उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के लेखन से हम इतिहास और सामाजिक बदलावों के के बीच खिंची एक पतली रेखा को मिटता देख रहे हैं. साहित्य हमेशा बदलाव की कुंजी रहा है और रहेगा भी. कार्यक्रम में कई महत्त्वपूर्ण लेखक और राजनयिक आदि शामिल थे.