पुरी: भारत संस्कृत और तमिल जैसी प्राचीन भाषाओं के साथ-साथ कई समृद्ध भाषाओं का देश है. समकालीन समय में सनातन भारतीय ज्ञान परंपरा और वैदिक साहित्य की प्रासंगिकता और भी अधिक है. यह बात केंद्रीय शिक्षा एवं कौशल विकास और उद्यमिता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने ओड़िशा के पुरी में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के श्री सदाशिव परिसर में ‘बलराम दास का लक्ष्मी पुराण: समानता, सशक्तीकरण और मोक्ष पर एक नया विमर्श‘ शीर्षक से आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ करते हुए कही. महान संत कवि बलराम दास द्वारा रचित लक्ष्मी पुराण, एक भक्तिमय गीतात्मक काव्य है, जो 15वीं शताब्दी ई. में पुरी, ओड़िशा में प्रकट हुआ था. बलराम दास को ओड़िया भाषा में उनकी ‘महान कृति‘ ‘रामायण‘ के कारण ओड़िशा के ‘बाल्मीकि‘ के रूप में जाना जाता है. वह ओड़िया साहित्य के ‘पंचसखा‘ युग से संबंधित हैं, जो भक्ति और ब्रह्म ज्ञान के प्रचार के लिए जाना जाता है. प्रधान ने परिसर में शैक्षणिक प्रशासनिक भवन तथा लड़कियों और लड़कों के छात्रावास भवन, क्वार्टर और खेल सुविधाओं की आधारशिला भी रखी. इस दौरान केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के कुलपति प्रोफेसर श्रीनिवास वरखेड़ी; केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री सदाशिव परिसर पुरी के निदेशक प्रो अतुल कुमार नंदा; राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय तिरूपति के पूर्व कुलपति प्रो हरेकृष्ण सतपथी; अन्य शिक्षाविद्, गणमान्य व्यक्ति, विद्वान और छात्र भी उपस्थित थे. समारोह के दौरान लक्ष्मी पुराण के संस्कृत अनुवाद का भी विमोचन किया गया.
केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में प्रधान ने इस बात का उल्लेख किया कि केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, पुरी ने संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने में अपनी पहचान बनाई है. उन्होंने संस्कृत के साथ सभी भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता और राष्ट्रभाषा का दर्जा देकर एक नई परिपाटी की शुरुआत करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आभार व्यक्त किया. प्रधान ने बताया कि आज शुरू की जा रही 100 करोड़ रुपए की परियोजनाओं का उपयोग भारतीय भाषाओं और वेदों को आधुनिक शिक्षा प्रणाली से जोड़ने के लिए किया जाएगा. प्रधान ने लक्ष्मी पुराण के महत्त्व का उल्लेख करते हुए बताया कि कैसे वेदों के ज्ञान, मूल्यों और संदेशों को आत्मसात करके हम सामाजिक न्याय, महिला सशक्तीकरण और महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास की ओर बढ़ सकते हैं. उन्होंने आशा व्यक्त की कि केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई पीढ़ियों को संस्कृत के साथ ही साथ भारतीय भाषाओं, साहित्य और विरासत से जोड़ने का काम करेगा. श्री सदाशिव परिसर पुरी केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के सबसे बड़े और प्रमुख परिसरों में से एक है, जो 15.28 एकड़ में फैला हुआ है. इसमें एक शैक्षणिक और आवासीय परिसर भी है. संगोष्ठी के पैनल चर्चा सत्र में महिला सशक्तीकरण; महिलाओं के नेतृत्व वाला विकास; जातिगत भेदभाव को मिटाने वाली नई सामाजिक व्यवस्था; ओड़िया संस्कृति और साहित्य पर लक्ष्मी पुराण का प्रभाव; लक्ष्मी पुराण द्वारा परिभाषित जगन्नाथ संस्कृति; भगवान और राष्ट्र के प्रति कर्तव्य और भक्ति; सर्वोच्च प्रकृति की शक्ति: ईश्वर का समर्पण; और आज के संदर्भ में भारतीय महाकाव्यों के पुनरावलोकन में विचार-विमर्श जैसे प्रमुख समसामयिक विषय शामिल थे.