नई दिल्लीः केरल साहित्य अकादमी द्वारा 28 वर्षीय को प्रतिष्ठित ‘गीता हिरण्यन एंडोमेंट‘ पुरस्कार दिए जाने की चर्चा पूरे देश में है. इसकी वजह संघर्षों के बीच भी अखिल का लेखन से जुड़ाव है. 12वीं के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ चुके अखिल को लघुकथाओं के उनके संग्रह ‘नीलाचदयन‘ के लिए यह सम्मान मिला है. उनकी यह पुस्तक 2020 में प्रकाशित हुई थी. अखिल ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि मुझे जो पहचान मिली है, उससे मैं खुशी महसूस करता हूं. यह अप्रत्याशित था. उन्होंने अपनी पहली साहित्यिक कृति के प्रकाशन को लेकर अपने संघर्ष की कहानी भी बताई कि कैसे जेसीबी चालक के रूप में काम करके थक जाने के बाद भी वे अपने विचारों को रात में लेखनीबद्ध करते रहे. हालांकि उन्हें परिवार का सहारा बनने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. लेकिन साहित्य के प्रति उनका अनुराग बना रहा. उनके परिवार में माता-पिता, भाई और दादी हैं. लेकिन एक दिहाड़ी मजदूर को यह प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार मिलने के बाद उभरते लेखकों के सामने प्रकाशन की मुश्किलों से जुड़ी एक सच्चाई भी सामने आ गई.
अखिल के मुताबिक चार वर्षों तक उन्होंने अपने लेखन कार्य के प्रकाशन के लिए कई प्रकाशकों एवं पत्रिकाओं से संपर्क किया. उनमें से कुछ को उनकी कहानियां पसंद आईं, लेकिन उन्होंने कहा कि बाजार ढूंढना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि वो इस क्षेत्र में जाना-पहचाना नाम नहीं थे. ‘नीलाचदयन‘ का प्रकाशन 20000 रुपए में सोशल मीडिया पर देखे गए एक विज्ञापन से हुआ. अखिल ने करीब 10 हजार रुपए बचाए थे. बाकी के 10 हजार रुपए जुटाने में उनकी दिहाड़ी मजदूरी करने वाली मां ने मदद की. पहली पुस्तक के प्रकाशन के लिए पैसे दिए गए, पर वह केवल ऑनलाइन बिक्री के लिए छपी. यह पुस्तक दुकानों में नहीं थी. उसे तब पहचान मिली जब बिपिन चंद्रन ने उनके बारे में सोशल मीडिया पर सकारात्मक बातें लिखीं. अखिल ने कहा कि बाद में लोग पुस्तक की दुकानों पर उसके बारे में पूछने लगे और प्रकाशन शुरू हो गया. अब तक इस पुस्तक के आठ संस्करण प्रकाशित हुए हैं.