लखनऊ: ‘हम ऐसी शोधपरक सामग्री रचें-गढ़ें कि लोगों में लंबे लेख की प्रवृत्ति उपजे. चार लाइन की संक्षिप्त सामग्री पढ़ने की उनकी बुरी आदत छूट जाए.‘ यह कहना था राज्यसभा के उपसभापति, लेखक-पत्रकार हरिवंश का, जो गोमतीनगर की भारतेंदु नाट्य अकादमी के थ्रस्ट सभागार में संवादी के द्वितीय दिवस के द्वितीय सत्र में अनंत विजय मंच से संवाद कर रहे थे. विजय ने हरिवंश से उनकी तीनों पुस्तकों ‘कलश‘, ‘सृष्टि का मुकुट: कैलास मानसरोवर‘ और ‘पथ के प्रकाश पुंज‘ को एक साथ लाने का मर्म जानना चाहा. उनका उत्तर था, ‘छपीं जरूर एक साथ, लेकिन मेरी ये तीनों पुस्तकें लिखी गईं अलग-अलग दौर में‘. उन्होंने बताया कि 2011 में अखबारनवीसी करते मैंने कैलास-मानसरोवर की यात्रा की. विद्यार्थी जीवन से ही मेरे मन में जिज्ञासा थी हिमालय दर्शन की.‘ दूसरी पुस्तक ‘कलश‘ ऐसे लोगों की स्मृतियां हैं, जिनसे मैंने अध्यात्म को जाना-समझा. ‘पथ के प्रकाशपुंज‘ में ऐसी विभूतियों, पुस्तकों का उल्लेख है, जिन्होंने मुझे जीवन की कठिनाइयों से लड़ने की ताकत दी. स्टेट बैंक के भूतपूर्व चेयरमैन आरके तलवार की जीवटता और दृढ़ ईमानदारी को इंगित करते हुए हरिवंश ने पंच लाइन दी कि कैरेक्टर और कन्विक्शन यानी चरित्र और दृढ़ विश्वास ही समाज को आगे ले जाता है. चरित्र नहीं है तो समाज टिक नहीं सकता. पुस्तक में एक शीर्षक है ‘विकल्पहीन गांधी‘. यह क्यों? हरिवंश ने गहरी श्वांस लेकर कहा कि भारतीय जीवन पद्धति ही दुनिया को बचा सकती है और गांधी इस पद्धति के सबसे बड़े प्रतीक हैं.
अनंत विजय ने पत्रकारिता के छात्रों की ओर से प्रश्न करते हुए पूछा कि भाषा को विषय के हिसाब से कैसे साधते हैं? उनका उत्तर था कि पत्रकारिता का सबसे बड़ा हथियार है भाषा. जितना पढ़ सकें, पढ़ें. कैलास मानसरोवर को सृष्टि का मुकुट कैसे कहते हैं? हरिवंश ने सहजता से रहस्योद्घाटन किया कि कैलास-मानसरोवर यात्रा पर जाने से पहले कई यात्रा वृत्तांत पढ़े. जब कठिन यात्रा कर अपनी आंखों से जाकर देखा तब सहज ही अभिव्यक्त हुआ ‘सृष्टि का मुकुट‘. गांव कितना बचाकर रख पाए? के उत्तर में हरिवंश ने कहा कि मेरे जीवन में गांव न होता तो मैं यह सब न कर पाता. हर मुसीबत का सामना करने की ताकत गांव ने ही दी. अनंत विजय ने पूछा कि कैसे रहें गांव में, वहां तो संसाधन नहीं? हरिवंश ने कहा कि गांव अब बदल चुके हैं, बस वहां के मूल्यों को फिर पल्लवित-पुष्पित करना होगा. जो गांव कभी समाज के लिए जीता था, वह अब बाजार की भेंट चढ़ रहा. गांव को बचाना होगा. दर्शक दीर्घा से अनुराग मिश्र, लोकगायिका रंजना मिश्र, दैनिक जागरण वाराणसी के संपादकीय प्रभारी भारतीय बसंत कुमार, महाप्रबंधक प्रशांत कश्यप की जिज्ञासा शांत करते हुए हरिवंश ने कहा कि हमें कड़े निर्णय लेने होंगे. बच्चों के लिए खुद को मोबाइल से अलग रखना होगा. शार्टनोट की जगह बड़े शोधपरक लेख लिखने और पढ़ने की आदत लोगों में मीडिया को डालनी होगी. कुछ भी कठिन नहीं. मुद्दे में बड़ी ताकत होती है. बस, इसे समझ लें.