जयपुर: स्थानीय जवाहर कला केंद्र की ओर से संगीतसाहित्य और सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान रखने वाले साहित्यकारों की स्मृति में ‘कला संसार‘ के तहत दो दिवसीय स्पंदन कार्यक्रम का आगाज हुआ. केंद्र इसके तहत चर्चित गीतकार शैलेन्द्रविजयदान देथाअमृता प्रीतमजय प्रकाश चौकसे और दुष्यंत कुमार की स्मृति में कई कार्यक्रम आयोजित कर रही है. कला एवं संस्कृति मंत्री डा बीडी कल्ला के उद्बोधन के साथ स्पंदन की शुरुआत हुई. कल्ला ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण होता है. साहित्यकारों के मार्गदर्शन में नयी पीढ़ी में लिखने की आदत विकसित करने की जरूरत है. इसके लिए साहित्य के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करने वाले लेखकों की स्मृति में आयोजन किए जाने चाहिए. पहले दिन गीतकार व साहित्यकार शैलेन्द्र पर आधारित पवन झा द्वारा निर्मित वृत्तचित्र ‘भेद ये गहरा…बात जरा सी…‘ प्रस्तुत किया गया. पुराने गीतों के दृश्यों के संयोजन के साथ निर्मित इस वृत्तचित्र में दर्शकों को शैलेन्द्र की लेखनी से जुड़े विभिन्न पहलुओं की बारीकियां जानने को मिलीं.

झा ने कहा कि भारत की आजादी के साथ-साथ शैलेन्द्र की रचनात्मकता का सफर शुरू हुआ. शैलेन्द्र ने गीत नहीं बल्कि फिल्मों में पटकथा और संवाद भी लिखे हैं. शैलेन्द्र के शुरुआती दौर के गीतों में जहां त्रासदी का उत्सव नजर आता हैवहीं उन्होंने किरदारों के माध्यम से अपने मन की बात भी गीतों में कही. केंद्र की अतिरिक्त महानिदेशक प्रियंका जोधावत ने जय प्रकाश चौकसे के साहित्य में अवदान विषय पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि सितंबर को जय प्रकाश चौकसे का जन्मदिन है. द्वितीय विश्व युद्ध का आरंभ वर्ष 1919 की इसी तारीख को हुआ था. विश्वयुद्ध की बेचैनी ताउम्र चौकसे के लेखन में अभिव्यक्ति पाती रही. एक बड़े दैनिक समाचार पत्र में संपादकीय पृष्ठ पर एक नियत स्थान पर अनवरत 26 वर्षों से अधिक समय तक अपनी बात बहुविध विषयों को आधार बनाते हुए लिखी. यहां तक कि होली-दीवालीहारी-बीमारी में बिना एक भी अवकाश के उनका स्थाई स्तंभ ‘पर्दे के पीछे‘ अनवरत जारी रहा. यह हिंदी साहित्य लेखन की इतिहास में आलेख विधा की एक नई सी पहचान बन अपना नाम दर्ज करवा चुका है.